25 दिस॰ 2010

चौधरी चरण सिंह (जन्म २३ दिसम्बर १९०२ - मृत्यु २९ मई १९८७) भारत के सातवें प्रधानमन्त्री थे। उन्होंने यह पद २८ जुलाई १९७९ से १४ जनवरी १९८० तक सम्भाला। चरण सिंह जी ने राजनीति में प्रवेश स्वाधीनता के समय किया। स्वाधीनता के पश्चात वह राम मनोहर लोहिया जी के ग्रामीण सुधार आन्दोलन में लग गये।
चौधरी चरण सिंह (जन्म २३ दिसम्बर १९०२ - मृत्यु २९ मई १९८७) भारत के सातवें प्रधानमन्त्री



युग नायक - चौधरी चरण सिंह
           जिस व्यक्ति को इस देश की मिट्टी के साथ लगाव है, जो इस देश की जनता की खुशहाली में रूची रखता है और भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के प्रति आस्थावान है उस सच्चे हितैषी के नाम चौधरी चरणिसंह था। कारण यह था कि कृषक व पिछडे वर्ग के लोगों की आबादी का ८०२ प्रतिशत भग ग्रामीण क्षेत्र में रहता है इसलिए उन्हांने यह नारा दिया था-‘‘देश की सम       द्धि का रास्ता गांवों के खेतों एवं खलिहानों से हाकर गुजरता है।‘‘ और इस मार्मिक नारे को उन्होंने पूर्णतया सत्य साबिता भी किया था।
       ऐसे युगपुरूष को जवीन परिचय जानना प्रतयेक किसान व जाठ समाज के प्रबुद्ध व्यक्ति के लिए अनिवार्य है। भारत के राजनैतिक क्षितिज पर अर्द्धशती तक छाये रहने वाले लौहपुरूष चौधरी चरणसिंह का जन्म उत्तरप्रदेश राज्य के मेरठ जिले के नूरपुरा ग्राम के एक साधारण आर्य किसान (जाट) परिवार में २३ दिसम्बर १९०२ का हुआ था।
       अनके पिता का नाम श्री मीरसिंह और माता का नाम नंत्रकौर था। इनके पिता श्री मीरसिंह जी नूरपुरा व मदौला कस्बों में खती का कार्य करते थे। चौधरी चरणसिंह ने १९२३ में आगरा कालेज-आगरा से विज्ञान में स्नातक की उपाधि एवं १९२५ में इसी कॉलेज से इतिहास विषय में एम. ए. की उपाधि  प्राप्त कीं आपने १९२६ में विधि स्नातक की उपाधि प्राप्त करके गाजियाबाद में सर्वप्रथम वकालात का कार्य शुरू किया।
       चौधरी चरणसंह जी ने छात्रजीवन में सबसे अधिक महात्मा गांधी जी के त्याग, बलिदान व उत्कृष्ट देशभक्ति से प्रभावित होकर महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के प्रगतिशील धार्मिक विचारों को अपने जीवन में अपनाया था और स्वामी जी की विचारधाराओं से प्रभावित होकर ही उन्होंने देश की स्वतंत्रता के आनदोलन में भग लिया और इस आन्दोलन को सफल बनाने में अपना तन-मन-धन न्यौछावर कर दिया।
गरीबों का मसीहा
       व्यक्ति जाति या धर्म से नहीं गुणों से महान होता है, इन गुणों के कारण ही चौधरी जी गरीबों के मसीहा कहलाएं उन्होंने जितने कार्य किए उनमें प्राथमिकता वाले कार्य जो गरीबों के लिए वरदान सिद्ध हुए है-सर्वप्रथम आपने १९२८ में किसान के मुकदमों के फैसले करवाकर उनको आपस में लडने के बजाय आपसी बातचीत द्वारा सूलझाने को साकार प्रयास किया। सन् १९३९ में ऋण विमोचक विधेयक पास करवाकर किसानों के खेतों की निलामी बचवायी और सरकारी ऋणों से मुक्ति दिलायी। हम आज आरक्षण प्राप्ति पर खुशियां मना रहे। आपने १९३९ में ही किसान सन्तान केा सरकारी नौकरियों में ५० फिसदी आरक्षण दिलाने का लेख लिखा था परन्तु तथाकथित राष्ट्रवादी कांग्रेसियों के विरोध के कारण इसमें सफलता नहीं मिल पाई। इससे स्पष्ट हो जाता है कि वह किसानों के सच्चे हितैषी थे।
       सन् १९३९ में अपाने किसानों को इजाफा-लगान व बेदखली के अभिशाप से मुक्ति दिलाने हेतु ‘‘भूमि उपयोग बिल‘‘ का मसौदा तैयार करवाया और १९५२ में जमींदारी उन्मूलन अधिनियम पास करवाकर एक प्रशंसनीय कार्य किया।
       आपने किसानों की प्रगति हेतु जो कार्य किए हैं वे एक अनूठी मिशाल है जो आज तक कोई किसान नेता नहीं कर पाया है और भविष्य में ऐसे हितैषी की उम्मीद नहीं के बराबर है।
       आपने किसानों के साथ-साथ छात्र समाज में अनंशासनहीनता को बिना लाठी गोली के मिटाया सरकारी अधिकारियों से रिश्वतखोरी मिटाने, प्रशासन में कमखर्ची व कुशलता लाने और देश की गरीबी व बेकारी हटाने के लिए अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया था। इसी कारण से सन् १९७७ में चीनी के भाव ३ रू. किलो होना अनूठी मिशाल हैं इन्हीं सभी बातों से आपका व्यक्तितव, चिंतन की दशा व नीति देश की सेवा करने का अभूतपूर्व प्रयास था।
       राजनैतिक जववन आपने १९२६ में गाजियाबाद में वकालत का कार्य प्रसिद्ध कांग्रेसी नेता व कवि श्री गोपीनाथ (अमन) के साथ शुरू किया था। इस दौरान १९३० में आपको व ‘अमन‘ साहब को नमक बनाने के आरोप में गिरफ्तार करके मेरठ जेल में भेज दिया गया। जेल से छूटने के बाद १९३२ में आपको मेरठ जिला बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया। देश में इस समय व्यक्तिगत सत्याग्रह का दौर चल रहा था इस आन्दोलन के लिए किसानों को सकि्रय करने हेतु आपको जिला सत्याग्रह समिति का मंत्री बनाया गया। इसी दौरन आपको २८ अक्टूबर १९४० में फिर बन्दी बना लिया गया व डेढ वष्र की सजा व जुर्माना किया गया।
       असस्त १९४२ में भारत सुरक्षा अधिनियम के अन्तर्गत पुनः गिरफ्तार किया गया व नवम्बर १९४३ में रिहा किया गयां इसी समय के दौरान १९२९ से १९३९ तक नगर कांग्रेस समिति, गाजियाबाद के सदस्य एवं १९३९ से १९४८ तक जिला कांग्रेस अध्यक्ष पद पर कार्य किया। इसी क्रम मं आप १९३७ में उत्तर प्रदेश छपरोली क्षेत्र से विधानसभा सदस्य निवार्चित किए गए और १९४६ में श्रीमान् गोविन्द वल्लभ पंथ मंत्री मण्डल से संसदीय सचिव बने।
       सन् १९५२ में डॉ. सम्पूर्णानन्द के मंत्री मण्डल में राजस्व व कृषि मंत्री बनाए गए थे। सन् १९५७ में उत्तर प्रदेश सरकार में राजस्व व परिवहन मंत्री बनें सन् १९५९ में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जी के द्वारा सहकार्य की नीति की कडी आलोचना करने पर आपने अप्रैल माह में मंत्री मण्डल से इस्तिफा दे दिया। सन् १९६० से १९६५ तक दत्तर प्रदेश में कृषि व वन मंत्री के पद पर कार्य किया। सन् १९६७ में कांग्रेस मंत्री मण्डल से इस्तिफा देकर विपक्ष से संयुक्त विधायक दल के नेता बने और ३ अप्रैल १९६७ को नए मंत्री मण्डल को गठन कर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद भार संभालां १९६८ में भारतीय क्रांतिकारी दल का नेतृत्व किया।
       सन् १९६ में उत्तर प्रदेश में विधानसभा के मध्यावधि चुनावों में ९८ सीटों पर विजय प्राप्त करके १९७० में पुनः उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और १९७४ में २९ अगस्त को लोकदल का गठन किया। १९७५ में इमरजेंसी के दौरान आपको गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया। १९७७ में जनतापार्टी के गठन में मुख्य भूमिका निभाकर लोकसभा के लिए प्रथम बार निर्वाचित हुए और जनता पार्टी सरकार में आप गृहमंत्री बने। ३० जून १९७८ केा प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के साथ मतभेद होने के कारण मंत्री मण्डल से त्याग पत्र दे दिया। २३ दिसम्बर १९७८ को दिल्ली के वोट क्लब पर आज तक की सबसे विशाल ऐतिहासिक रैली का आयोजन किया गया।
       २४ फरवरी १९७९ को जनतपार्टी सरकार में उपप्रधानमंत्री व वितमंत्री का कार्य संभालां जुलाई १९७९ को अपाने अपने अनुयायी सांसदो सहित पाटी्र से सामूहिक त्यागपत्र दे दिया। इससे देसाई जी की सरकार  गिर गई। आप २८ जुलाई १९७९ को नौ सदस्यीय प्रधानमंत्री पद की शपथ लेकर देश के पांचवे प्रधानमंत्री बने और जाट जाति का नाम रोशन करके उसका गौरव बढाया। २० अगस्त १९७९ को कांग्रेस सरकार द्वारा अपना समर्थन वापिस लेने के कारण सरकार गिर गई और लोकसभा भंग कर दी गई। सन् १९८० में आपने एक नई पार्टी दलित मजदूर किसान पार्टी का गठन किया। जिसे १९८५ में लोकदल में परिवर्तित कर दिया।
       २९ नवम्बर १९८५ को आप बीमार हो गए और १४ माच्र १९८६ को अमेरिका के मैरिलैन्ड राज्य के जॉन  होवकिस ईस्टीट्यूट ऑफ मेडिसन में इलाज करवाने केन्द्र सरकार के व्यय पर गए। २९ मई १९८७ की रात्रि को २.२५ बजे आप इस संसार से विदा हो गएं आफ निधन से समूचा भारत अन्धकार के गर्त में समा गया और विभिन्न राजनेताओं, कवियों व प्रबुद्धजीवियों के द्वारा आपको सच्चे मन से श्रद्धांजलियां दी गई।

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