22 नव॰ 2011

उत्तर प्रदेश का विभाजन और मायावती
(विभिन्न समाचार पत्रों से साभार)

16 मिनट में 20 करोड़ लोगों की किस्मत का फैसला

लखनऊ।
Story Update : Tuesday, November 22, 2011    3:05 AM
Fate of 20 million people in 16 minutes
सूबे की सबसे बड़ी पंचायत ने सोमवार को बीस करोड़ लोगों की किस्मत और 70 हजार करोड़ रुपये के बजट का फैसला बगैर चर्चा या मशविरे के महज 16 मिनट में कर दिया। विधानसभा में विपक्ष के शोरशराबे और हंगामे के बीच मायावती सरकार ने दोनों सदनों में राज्य को चार हिस्सों में बांटने और लेखानुदान के प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित करा लिए।

विपक्ष इस दांव से चित हो गया
इसके साथ ही दोनों सदन अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिए गए। सरकार को अल्पमत में बताकर अविश्वास प्रस्ताव की कवायद में जुटा विपक्ष इस दांव से चित हो गया। बाद में, पूरे विपक्ष ने कहा कि अव्यवस्थित सदन में अफरातफरी में प्रस्ताव पारित कराए जाने से सदन की परंपराओं की धज्जियां उड़ी हैं। सपा और भाजपा विधायकों ने राजभवन जाकर राज्यपाल से सदन की कार्रवाई को निरस्त करने की मांग की। यह भी कहा कि राज्य विभाजन का प्रस्ताव को केंद्र न भेजा जाए। लेकिन सरकार ने देर शाम एक और दांव चला। उसने कैबिनेट से बाई सर्कुलर के जरिए सत्रावसान का प्रस्ताव पारित करवा लिया। सत्रावसान होने के बाद राज्यपाल इस मामले में दखल नहीं दे पाएंगे।

चर्चा की मांग के लिए दबाव बनाना शुरू
सुबह 11 बजे जैसे ही विधानसभा की कार्यवाही शुरू हुई, सपा और भाजपा सदस्यों ने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव रखते हुए पहले उसी प्रस्ताव पर चर्चा की मांग के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया। भाजपा सदस्य वेल में आ गए, तो सपा सदस्य अपने स्थान पर खड़े होकर हंगामा करते रहे। विधानसभा अध्यक्ष सुखदेव राजभर ने सदन व्यवस्थित करने की कोशिश के तहत कई बार कहा कि प्रश्नकाल खत्म होने के बाद विपक्ष की बात सुन ली जाएगी, लेकिन विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार किए जाने की मांग पर अड़ा रहा। हंगामा न थमने पर अध्यक्ष ने 11 बजकर 4 मिनट पर सदन 12: 20 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया। 12: 20 बजे दोबारा सदन की कार्यवाही शुरू होने पर सपा सदस्य मुख्य सचेतक अंबिका चौधरी के नेतृत्व में वेल में आकर नारेबाजी करने लगे।

प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित कर दिया गया
हंगामे के बीच ही संसदीय कार्य व वित्त मंत्री लालजी वर्मा ने लेखानुदान मांगों से संबंधित प्रस्ताव सदन में पेश कर दिया। हो-हल्ले के बीच ही 12: 25 पर प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित हो गया। इसके बाद, संसदीय कार्यमंत्री ने डॉ शकुंतला मिश्रा पुनर्वास विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश संशोधन विधेयक 3011 को भी ध्वनिमत से पारित करा लिया। करीब 12: 30 पर मुख्यमंत्री मायावती ने प्रदेश को चार हिस्सों में बंटवारे का प्रस्ताव सदन में पेश किया। विपक्ष के हंगामे के बीच यह भी ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। राष्ट्रीय लोकदल ने राज्य बंटवारे के प्रस्ताव का समर्थन किया। वहीं, शोरशराबा थमता न देख, विधानसभा अध्यक्ष सुखदेव राजभर ने संसदीय कार्यमंत्री के प्रस्ताव पर सदन को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया।

मामले में दखल नहीं दे पाएंगे राज्यपाल
सपा और भाजपा विधायकों ने राजभवन जाकर राज्यपाल से सदन की कार्रवाई को निरस्त करने की मांग की। यह भी कहा कि राज्य विभाजन का प्रस्ताव को केंद्र न भेजा जाए। लेकिन सरकार ने देर शाम एक और दांव चला। उसने कैबिनेट से बाई सर्कुलर के जरिए सत्रावसान का प्रस्ताव पारित करवा लिया। सत्रावसान होने के बाद राज्यपाल इस मामले में दखल नहीं दे पाएंगे।
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सिर्फ 16 मिनट का सत्र

Nov 22, 12:53 am
लखनऊ, जाब्यू : विपक्ष की कोशिश कामयाब नहीं हुई। वह सरकार के बहुमत की परीक्षा नहीं ले सका। उसके अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस स्वीकार ही नहीं हुआ तो लेखानुदान पर भी मत विभाजन की उसकी मांग को अनसुना कर दिया गया। देश के सबसे बड़े राज्य को चार हिस्सों में बांटने का प्रस्ताव मात्र दो मिनट में पारित करा लिया गया। न कोई चर्चा, न कोई तर्क। शोर-शराबे और हंगामे के बीच लगभग 70 हजार करोड़ रुपये का लेखानुदान पारित कराकर सदन को अपने निर्धारित कार्यक्रम से एक दिन पहले ही बेमियादी अवधि के लिए स्थगित कर दिया गया। विधानसभा की कार्रवाई भी सिर्फ 16 मिनट ही चली।
दरअसल लेखानुदान धन विधेयक होता है। उसे सदन से स्पष्ट बहुमत से पास कराना अनिवार्य होता है। धन विधेयक पारित न करा पाने पर सरकार गिर जाती है। सपा-भाजपा अलग-अलग अविश्वास प्रस्ताव लाने की घोषणा करके भी सरकार के बहुमत का इम्तिहान लेना चाह रहे थे। उनकी नजर बसपा के असंतुष्ट विधायकों पर थी। सदन में बसपा के 219 सदस्य हैं। सदन की मौजूदा संख्या बल के हिसाब से सरकार को बहुमत साबित करने के लिए 198 सदस्यों के समर्थन की जरूरत थी। समाजवादी पार्टी ने राज्यपाल को दिए गए ज्ञापन में टिकट कटने से 40 से अधिक विधायकों के बसपा के साथ न होने का दावा किया था।
सदन शुरू होते ही हंगामा : सदन में सरकार जहां पूरी तैयारी से आयी थी वहीं विपक्ष भी आर-पार करने के इरादे से था। दोनों ही तरफ के सदस्यों की बेंच लगभग भरी हुई थी। मुख्यमंत्री जरूर उस वक्त सदन में मौजूद नहीं थी। पूर्वाह्न ग्यारह बजे वंदेमातरम के बाद जैसे ही अध्यक्ष ने प्रश्नों के लिए सदस्य का नाम पुकारा, विपक्ष ने विरोध शुरू कर दिया। सपा सदस्यों ने अपने स्थान पर खडे़ होकर छोटे-छोटे बैनर लहराने शुरू कर दिये, जिन पर सरकार विरोधी नारे लिखे थे। वह इन्हें छिपा कर लाये थे। भाजपा सदस्य भी वेल में पहुंच गये। सदस्यों की मांग थी कि सरकार अल्पमत में हैं इसलिए उसे बर्खास्त किया जाए। संसदीय कार्यमंत्री लालजी वर्मा का कहना था सरकार के पास दो तिहाई बहुमत है। विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं है इसीलिए हंगामा कर रहा है। विधानसभा अध्यक्ष सुखदेव राजभर ने विपक्ष से सदन चलाने में सहयोग की मांग की, पर बात न बनते देख उन्होंने सदन को दोपहर 12.20 तक स्थगित कर दिया।
फिर शुरू हुई कार्यवाही : दुबारा सदन शुरू होने के वक्त मुख्यमंत्री भी सदन में मौजूद थीं। राज्यपाल दीर्घा भी मुख्यमंत्री सचिवालय के अधिकारियों से भर गयी थी। लाल जी वर्मा ने अगले वित्तीय वर्ष के लिए अंतरिम बजट और लेखानुदान पेश किया। विपक्ष ने इसका विरोध शुरू कर दिया। सपा और भाजपा के तमाम सदस्य वेल में आ गये। उन्होंने अध्यक्ष के ऊपर कागज के गोले भी फेंके। शोरगुल के बीच ध्वनिमत से लेखानुदान पारित हो गया। एक विधेयक (डा. शकुन्तला मिश्रा पुनर्वास विश्वविद्यालय उप्र संशोधन) भी पारित करा लिया गया। आननफानन में मुख्यमंत्री ने उप्र का पुनर्गठन कर उसे चार पृथक राज्यों में बांटने के लिए केन्द्र को भेजे जाने वाला प्रस्ताव भी रख दिया, जो ध्वनिमत से पारित हो गया। इसी के बाद लालजी वर्मा ने अध्यक्ष का ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि जो लेखानुदान पास हुआ है उसे सदन का विश्वास प्राप्त किया हुआ मान लिया जाए। अध्यक्ष की स्वीकृति मिलते ही सदन की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गयी।
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* दूसरा समाचार *
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क्यों करूंगी विधानसभा भंग : मुख्यमंत्री
लखनऊ, जाब्यू : विधानसभा भंग किये जाने के कयासों को झुठलाते हुए मुख्यमंत्री मायावती ने सोमवार को इसे विपक्ष की साजिश बताया। उन्होंने मीडिया के सवाल पर सवालिया लहजे में कहा, 'मुझे पूर्ण बहुमत हैं, मैं क्यों करूंगी विधानसभा भंग।'
अनिश्चितकाल के लिए विधानसभा स्थगित हो जाने के बाद मुख्यमंत्री ने एनेक्सी स्थित मीडिया सेंटर में प्रेस कांफ्रेंस की। उन्होंने कहा कि सरकार के अल्पमत में होने की बात में कोई दम नहीं है। उन्होंने तर्क भी दिया, 'नये परिसीमन में क्षेत्र इधर उधर होने के कारण कुछ विधायकों ने स्वेच्छा से चुनाव लड़ने से मना कर दिया तो इसका मतलब यह नहीं कि वह बसपा के सदस्य नहीं रहे। लोकायुक्त की जांच के चलते कुछ मंत्रियों से नैतिकता के आधार पर इस्तीफा लिया गया, पर वह आज भी बसपा के ही विधायक हैं। किसी भी विधायक ने यह नहीं कहा कि वह बसपा के साथ नहीं है। उल्टे एक दर्जन से अधिक विधायक दूसरी पार्टियों से आ चुके हैं। फिर अल्पमत की बात कहां से आ गयी।'
विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव के बाबत मायावती का तर्क रहा कि लेखानुदान को सरकार का विश्वासमत हासिल किया जाना माना जाता है। दिसंबर 2006 में इसी तरह से तत्कालीन सपा सरकार द्वारा लेखानुदान पारित कराने को विश्वासमत माना गया था। उन्होंने विधानसभा को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित किये जाने के लिए विपक्ष को जिम्मेदार ठहराया।
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* तीसरा समाचार *
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विभाजन को मंजूरी देकर गेंद केंद्र के पाले में डाली
लखनऊ, जाब्यू : उप्र को चार भागों में विभाजित करने के प्रस्ताव को विधानमंडल की मंजूरी दिलाकर राज्य सरकार ने गेंद केंद्र के पाले में डाल दी है। प्रस्ताव को मंजूरी दिए जाने के बाद मुख्यमंत्री मायावती ने कहा भी 'यूपी ने अपनी जिम्मेदारी निभा दी, अब केन्द्र की बारी है। बहुत जल्द इस प्रस्ताव को केन्द्र को भेज दिया जायेगा।' विधानसभा से ध्वनिमत से जो प्रस्ताव पारित हुआ है, उसमें कहा गया है, 'ये सदन केंद्र सरकार से संस्तुति करता है कि उप्र का पुनर्गठन करते हुए पूर्वाचल, बुंदेलखंड, अवध प्रदेश एवं पश्चिम प्रदेश के नाम से चार राज्यों की स्थापना की जाए।' मुख्यमंत्री ने खुद इसे सदन में पेश किया। इतने बड़े निर्णय पर सदन के अंदर कोई चर्चा न होने के सवाल पर मायावती ने पत्रकारों को सफाई दी कि वह तो चर्चा कराना चाहती थीं लेकिन विपक्ष इसके लिए तैयार नहीं था, इसलिए वह हंगामा करता रहा।
सोमवार को विधानमंडल से पारित प्रस्ताव में भी इस बात का कोई जिक्र नहीं किया गया गया है कि कौन-कौन जिले किस राज्य का हिस्सा होंगे। राज्य पुनर्गठन की जो संवैधानिक प्रक्रिया है, उसके दृष्टिगत राज्य सरकार को भी मालूम है कि उसके इस तरह के प्रस्ताव का कोई मतलब नहीं है। खुद मुख्यमंत्री मायावती लिखित बयान में कह चुकी हैं- 'प्रदेश सरकार को राज्य पुनर्गठन के लिए मंत्रिपरिषद अथवा विधानमण्डल में प्रस्ताव पारित कराने की संवैधानिक बाध्यता नहीं है, क्योंकि ऐसा विधेयक लाने का अधिकार पूरी तरह से केन्द्र के पास है लेकिन केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए राज्य सरकार ने विभाजन का प्रस्ताव विधानमंडल से पास कराने का निर्णय किया।' उन्होंने अपने इस स्टैंड को आज भी दोहराया।
विपक्ष द्वारा इसे चुनावी हथकंडा करार देने के सवाल पर मायावती ने कहा कि 2007 में केन्द्र को इस बाबत पहली चिट्ठी भेजी गयी थी, तब से बराबर प्रयास किया जा रहा है। केन्द्र ने तवज्जो नहीं दी इसलिए यह कदम उठाना पड़ा।
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* इनसेट*
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यह है राज्य विभाजन की प्रक्रिया
- संविधान के अनुच्छेद तीन के अनुसार किसी नये राज्य का गठन, किसी राज्य का विभाजन या राज्यों के कुछ हिस्सों को आपस में बदलने का अधिकार केवल केन्द्र सरकार के पास है।
- किसी भी राज्य द्वारा भेजे जाने वाले विभाजन का प्रस्ताव मानने के लिए केन्द्र बाध्य नहीं है।
- किसी भी राज्य के विभाजन के लिए न तो राज्य पुनर्गठन आयोग बनाने की जरूरत होती है और न ही राज्य सरकारों की स्वीकृति की।
- अगर किसी राज्य का विभाजन कर नया राज्य बनाना हो तो केन्द्र को कैबिनेट की मंजूरी से प्रस्ताव राष्ट्रपति को भेजना होता है। राष्ट्रपति उसे उस राज्य या राज्यों को भेजते हैं जिनका विभाजन होना होता है। सम्बंधित विधानसभाओं को एक निश्चित अवधि में अपनी राय राष्ट्रपति को भेजनी होती है। अगर किसी विधानसभा द्वारा इस प्रस्ताव का विरोध किया भी जाता है तो उसका कोई असर नहीं पड़ता है।
- राष्ट्रपति की संस्तुति के बाद केन्द्र सरकार को उसे संसद के दोनों सदनों से पारित कराना होता है। पारित होने के बाद उसे फिर से राष्ट्रपति को भेजा जाना होता है। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही राज्य का विभाजन कर नये राज्य का गठन किया जा सकता है।
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* चौथा समाचार *
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लेखानुदान के जरिए चार महीने के खर्च का बंदोबस्त
लखनऊ, जाब्यू : राज्य सरकार ने सोमवार को लगभग 70 हजार करोड़ रुपये के लेखानुदान के जरिये अगले वित्तीय वर्ष के शुरुआती चार महीने के खर्च का बंदोबस्त कर लिया है। इसके लिए सरकार ने अंतरिम बजट पेश किया जिसमें एक लाख 91 हजार करोड़ रुपये की प्राप्ति का अनुमान लगाया गया है। प्रदेश के वित्त मंत्री लालजी वर्मा ने बजट भाषण पेश करते हुए कहा-'यह अंतरिम बजट है जिसमें केवल वचनबद्ध व्यय के अनुमान सम्मिलित किए गए हैं। परंपरानुसार पूर्ण बजट नई सरकार द्वारा ही लाया जाएगा।'
लेखानुदान के जरिए खर्च की स्वीकृति वित्तीय वर्ष 2012-2013 के अप्रैल, मई, जून जुलाई के लिए है। वैसे सरकार ने साल भर के अंतरिम बजट में वित्तीय वर्ष 2010-13 में 186221.42 करोड़ रुपये के व्यय का अनुमान लगाया है जिसमें 47.351.34 करोड़ रुपये आयोजनात्मक पक्ष में तथा 138870.07 करोड़ आयोजनेत्तर पक्ष में है। वित्त मंत्री ने स्पष्ट किया है कि लेखानुदान की धनराशि को 'नई सेवा' पर व्यय नहीं किया जाएगा। सरकार ने 94 विभागों में चार महीनों का अनुमानित खर्च का विवरण पेश किया है जिसमें सर्वाधिक धनराशि वेतन, भत्तों व पेंशन के मद में है।
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जो हुआ सही नहीं हुआ

Nov 22, 12:53 am
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'सोमवार को विधानसभा में जो कुछ हुआ उससे यह साबित होता है कि राज्य में विधायिका की कोई दिशा नहीं है। मुझे याद आता है प्रख्यात विधिवेत्ता नानी पालकीवाला का यह कथन कि हमारे मंत्री बखूबी यह जानते हैं कि सांविधानिक प्रक्रियाओं का उल्लंघन करना दंड योग्य अपराध नहीं है। ऐसी घटनाएं उनकी टिप्पणी को सही साबित करती हैं। राज्य के पुनर्गठन जैसा महत्वपूर्ण प्रस्ताव विधानसभा में बिना चर्चा के पारित हो जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। बहुमत के दम पर सरकार भले ही इस प्रस्ताव को पारित करा ले गई हो लेकिन इस निर्णय में जनता की भागीदारी नहीं है। यदि प्रस्ताव पर चर्चा होती तो पक्ष-विपक्ष जनप्रतिनिधियों के रूप में उस पर अपने विचार व्यक्त करते और उस पर बाकायदा वोटिंग होती। लेखानुदान धन विधेयक की श्रेणी में आता है और उसे पारित कराकर सरकार बेशक यह कह सकती है कि उसे सदन का विश्वास हासिल है। लेखानुदान पर अध्यक्ष का फैसला अंतिम होता है।'
-भालचंद्र शुक्ल, पूर्व सचिव विधानसभा
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'विधानमंडल का सत्र छोटे से छोटा होता जा रहा है। यह संसदीय लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है। हालांकि इसके लिए कोई एक नहीं बल्कि सत्ता में रहे ज्यादातर राजनीतिक दल जिम्मेदार हैं। लेखानुदान और राज्य पुनर्गठन जैसे प्रस्तावों पर चर्चा के लिए अध्यक्ष को पर्याप्त समय देना चाहिए था और उन पर वोटिंग भी होनी चाहिए थी। यदि विपक्ष ने विधानसभा अध्यक्ष को अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है तो उस पर उन्हें बहस करानी चाहिए थी लेकिन तकनीकी तौर पर सरकार यह आड़ ले सकती है कि लेखानुदान का प्रस्ताव पारित कराकर उसने सदन का विश्वास हासिल होना साबित कर दिया है।'
- पीसी सक्सेना, पूर्व सचिव विधानसभा
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'सूबे में विधायिका तानाशाही की तरफ जा रही है। अपनी बात को जबर्दस्ती दृसरों पर थोप देना तो कम्युनिस्ट देशों की रीति है। राज्य के पुनर्गठन का अधिकार तो केंद्र के पास है लेकिन यदि राज्य की ओर से ऐसा कोई प्रस्ताव केंद्र को भेजा जा रहा है तो सूबे की विधायिका को उस पर विस्तार से चर्चा तो करनी चाहिए थी। ऐसे में यह सियासी स्टंट से ज्यादा कुछ और नहीं। विपक्ष ने यदि विधानसभा अध्यक्ष को अविश्वास प्रस्ताव लाने की नोटिस दी थी तो कार्य मंत्रणा समिति को इसे एजेंडा में शामिल करना चाहिए था। यदि उन्होंने ऐसा नहीं किया तो यह गलत है। वैसे भी परंपरागत तौर पर लेखानुदान पर विधानसभा में चर्चा नहीं होती है। इसलिए अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा करानी चाहिए थी।''
- राजेंद्र प्रसाद पांडेय, पूर्व प्रमुख सचिव विधानसभा
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'विधानमंडल के घटनाक्रम में सरकार के सौ प्रतिशत तानाशाह रवैये की झलक दिखती है। लेखानुदान और राज्य के पुनर्गठन के महत्वपूर्ण प्रस्ताव पर चर्चा से बचना संसदीय लोकतंत्र का गला घोंटने जैसा है। साथ ही सदन में जनप्रतिनिधियों के माध्यम से जनता की भावनाओं की अभिव्यक्ति को खारिज करना भी है। संविधान के निर्माताओं की यह मंशा तो नहीं थी। हो सकता है कि सदन में जिसके पास बहुमत हो वह सही कह रहा हो लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि जिसे बहुमत नहीं हासिल है, उसे अपनी बात कहने का हक नहीं। उत्तराखंड के गठन का संकल्प प्रस्ताव केंद्र से बाकायदा मंजूर होकर आया था। राज्य के पुनर्गठन सरीखे महत्वपूर्ण प्रस्ताव को सदन की कार्यसूची में शामिल न करना संवैधानिक गरिमा के प्रतिकूल है। यदि विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है तो लेखानुदान पर भी मत विभाजन होना चाहिए था।'
- ओम प्रकाश शर्मा, विधान परिषद के वरिष्ठतम सदस्य
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हंगामे के बीच 'यूपी विभाजन' का प्रस्ताव पारित
लखनऊ, एजेंसी
First Published:21-11-11 01:21 PM
Last Updated:21-11-11 04:41 PM
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उत्तर प्रदेश को चार हिस्सों में विभाजित करने का प्रस्ताव सोमवार को राज्य विधानसभा में पारित हो गया। इसके साथ ही विधानसभा की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई।
प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि यह चुनावी हथकंडा नहीं है, जबकि प्रदेश के हित में ही यह निर्णय लिया गया है। उन्होंने कहा कि वह जल्द इस प्रस्ताव को केंद्र सरकार को भेजेंगी।
विधानसभा में भारी हंगामा करने के लिए विपक्षी दलों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि उनकी सरकार अल्पमत में नहीं है, जब विपक्षी दलों की चाल है। उन्होंने कहा कि जो दागी नेता रहे उन्हें उन्होंने खुद ही हटाया।
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यूपी विधानसभा में राज्य के बंटवारे का प्रस्ताव पारित

 सोमवार, 21 नवंबर, 2011 को 12:37 IST तक के समाचार
मायावती
राज्य सरकार की केबिनेट राज्य को चार भागों में बांटने का प्रस्ताव पारित कर चुकी है
उत्तर प्रदेश के दो दिनों के विधानसभा सत्र के पहले दिन भारी हंगामें के बीच राज्य के चार हिस्सों में बंटवारें का प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित हो गया है.
इस प्रस्ताव के पारित होते ही सदन को अनिश्चित काल के स्थगित कर दिया गया है.
विपक्ष के भारी विरोध के बावजूद विधान सभा में पारित इस प्रस्ताव के अनुसार उत्तर प्रदेश को चार नए राज्यों - पूर्वांचल, बुंदेलखंड, अवध प्रदेश और पश्चिम प्रदेश में बांटने की सिफारिश की गई है.
अब ये प्रस्ताव विधान परिषद के समक्ष पेश होगा और उसके बाद केंद्र सरकार के पास जाएगा जहां इस पर अंतिम मुहर लगेगी.

विधानसभा में हंगामा

सोमवार सुबह विधानसभा का सत्र शुरु होते ही विपक्ष ने सरकार के ख़िलाफ़ पोस्टर लहराए जिनपर लिखा हुआ था कि राज्य की मुख्यमंत्री मायावती नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए इस्तीफ़ा दे.
विधानसभा का सत्र जैसे ही सुबह 11 बजे शुरु हुआ विपक्षी दलों समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने मांग की या तो मायवती इस्तीफ़ा दे या फिर केंद्र की सरकार राज्य सरकार को बर्ख़ास्त करे.
हालांकि स्पीकर ने विपक्षी दलों को मनाने की कोशिश करते हुए कहा कि वे प्रश्नकाल को पूरा होने दे फिर उनके मुद्दों पर चर्चा की जा सकती है.
लेकिन विपक्ष चाहती थी कि विधानसभा में राज्य की क़ानून-व्यवस्था, भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बहस हो और सपा और भाजपा चाहती थी कि अविश्वास प्रस्ताव लाया जाए.
इस हंगामें के बीच विधानसभा का सत्र दोपहर 12.20 तक के लिए स्थगित करना पड़ा था. जब सदन की कार्यवाही दोबारा शुरू हुई तो सत्तारूढ़ दल ने तुरंत राज्य के विभाजन करने की सिफ़ारिश वाला प्रस्ताव पेश कर इसे ध्वनि मत से पारित करवा लिया.

'अल्पमत में सरकार'

समाजवादी पार्टी का दावा है कि सरकार बहुमत खो चुकी है क्योंकि अगामी विधानसभा चुनाव के लिए बसपा ने चालीस विधायकों को टिकट नहीं दिए है.
समाजवादी पार्टी का कहना है कि जिन विधायकों को टिकट नहीं दिए गए हैं वे अब सरकार का समर्थन नहीं कर रहे हैं.
लेकिन मायावती ने विपक्ष के इस आरोप को ख़ारिज करते हुए कहा है कि उनकी सरकार अल्पमत में नहीं है.
समाजवादी पार्टी और भाजपा ने विधानसभा अध्यक्ष सुखदेव राजभर को ज्ञापन सौंपते हुए बसपा के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव लाने की मांग की है.
मायावती ने राज्य को चार भागों में बांटने का प्रस्ताव दिया था. उन्होंने ये घोषणा की थी कि उत्तर प्रदेश को चार राज्यों में बांटने के लिए विधान सभा के अगले सत्र में प्रस्ताव लाएगी
समाजवादी पार्टी के नेता शिवपाल यादव का कहना था, ''मायावती सरकार पर से लोगों का विश्वास ख़त्म हो गया है. सरकार अल्पमत में आ गई है क्योकि कई जिन विधायकों को टिकट नहीं दी गई है वे मायवती से गुस्सा है.अब उनके पास पर्याप्त संख्या नहीं है.''
शिवपाल यादव का कहना था कि मायवती सरकार राज्य को बांटने का प्रस्ताव पास नहीं करवा पाएंगी क्योंकि वे अल्पमत में है.
सपा के अंबिका चौधरी का कहना है कि राज्य के बंटवारे के मुद्दे पर सभी दलों की स्पष्ट राय है कि वे विभाजन नहीं चाहती.
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