19 जन॰ 2012

उत्तर प्रदेश मुलायम को पुकार तो रहा है ..........
डॉ.लाल रत्नाकर 
आज भले ही कुछ नकारे और निक्कमें सपा टिकट लेने में कामयाब हो गए हों पर आज उत्तर प्रदेश की अवाम जानती है की यदि उत्तर प्रदेश की गरिमा बचानी है तो मुलायम को वापस लाना होगा .
जिस मायावती ने उत्तर प्रदेश को खंड खंड करने का संकल्प भारत सर्कार को भेज चुकी हो. उन्हें उस प्रदेश में चले जाना चाहिए जिस का उन्हें लोभ हो, उत्तराखंड के बटवारे का दर्द प्रदेश अभी सहा भी नहीं था की इन्होने इसे टुकडे करने की 'हिम्मत' कर ली .
आज हर प्रदेशवासी इनके 'अहंकार' को चूर करने का संकल्प लिया है बस उसे इंतज़ार ही था इस चुनाव की घोषणा होने का . जिस दलित के अपमान और सम्मान की बात  वो आज कर रही हैं वह तो वह अपनी मूर्तियाँ 'गढवा' कर सैधांतिक रूप से उसी अपमान को पूरा करने का मूर्खतापूर्ण कार्य कर चुकी हैं .'मूर्तिपूजा' के विरोधी तमाम दलितों के लिए यह मूर्तियाँ  क्या सन्देश दे रहीं हैं . इसे माया को समझना होगा, अहंकार से मगरूर माया को संभवतः यह पता नहीं की मूर्तियाँ लगा देने से गरीब का पेट नहीं भरता, पेट भरने पर मूर्तियाँ अच्छी लगती हैं. इन मूर्तियों ने भी वही काम किया है जो हजारों वर्षों से 'द्विज  संस्कृति' ने किया है. गरीबों की मसीहा बनने की उनकी भूख ने उन्हें द्विजों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है. महात्मा फुले, बाबा आम्बेडकर या अन्य किसी पिछड़े दलितों के नायकों ने अपनी मूर्तियाँ गढ़ाई थीं ! नहीं पर आज वो लोगों के दिलों पर निशान की तरह लटके रहते हैं. मायावती जी भले ही यह न जानती हों की उनके पीछे प्रदेश को किस कदर लूटा गया है, कितनी हत्याएं हुयी हैं, कितनी आत्म हत्याएं हुयी हैं . पर जनता जानती है की सबके पीछे उन्ही का हाथ रहा है.
ऐसे में उत्तर प्रदेश पूर्व के चुनाव के विकल्प के रूप में यदि उन्हें सत्ता दी थी तो वह वापस लेना भी जानती है, आज दलित गुजरे ज़माने का दलित नहीं रहा जिसे यह पता न हो की जिस द्वीज साम्राज्य को उसने उत्तर प्रदेश से साफ किया था उसे इन्होने 'पुनरस्थापित' किया है. यह आज का दलित समझता है की कल 'पुजारी' समुदाय इन पर तिलक लगाएगा और दक्षिणा प्राप्त करेगा . और इन्ही दलितों से .
सचमुच की माया बना लेगा इनसे और इन्हें कहीं दूर सुदूर रखेगा इन स्मारकों से .
और इसी सब अन्याय और अत्याचार से छुटकारे के लिए उत्तर प्रदेश की अवाम "मुलायम" को लाने का मन बना चुकी है.
बस मुलायम सिंह की मजबूरी क्या है यह समझाने की बात नहीं है मुलायम सिंह धोखा तो खा जाते हैं पर धोखे में नहीं रखते किसी को. यही कारन है की बहुत सारी सीटें जिसे मुलायम की पार्टी सहज जीत सकती थी पर प्रत्याशियों की वजह से हार रही है .
पार्टी की कमान जिस नवयुवक पुत्र को उन्होंने सौपी है वह एक बड़ी भूल भी साबित हो सकती है, यही खतरा पुरे 'जनमानस' के मस्तिष्क में भरा हुआ है की क्या सपा के पास अच्छा और बेटे के अलावा कोई नेता नहीं है. यदि यह सही है तो पार्टी की अपनी व्यवस्था इस चुनाव को ठीक से संभाल नहीं पाएगी और इसका लाभ भी अंततः बसपा को ही मिलेगा . यही अनुमान लगभग सभी को है. 
(यहाँ दो पोस्टर दीये जा रहे हैं इनका आलेख से कोई लेना देना नहीं है)

क्या अब जौनपुर में कभी विचारवान राजनेता नहीं होंगे गिरते राजनीतिक परिदृश्य में - जाहिलों की भरमार होती जा रही है, हर वह नवजवान जो किसी तरह से लक्ष्मी पुत्र बनते ही राजनितिक बनने की ललक पाले हुए है जबकि पहले ऐसा नहीं था, इसका उदहारण राजनितिक दलों के सभी प्रत्याशियों में नज़र आता है, कुछ पुराने ज़माने के घाटियाँ नेता भी इस तरह की जमात की तलाश में जिले कि राजनितिक प्रतिभाओं के लिए 'राहू और केतू' के रूप में आड़े आ रहे हैं. जिससे जिले का पूरा तंत्र भ्रष्टाचार कि मार झेल रहा है.

राजनीतिज्ञों के लिए आदर्श हैं पूर्व मंत्री ओम प्रकाश श्रीवास्तव

Jan 25, 10:23 pm
जौनपुर: पूर्व चिकित्सा शिक्षा मंत्री रह चुके ओम प्रकाश श्रीवास्तव आज के राजनेताओं के लिए आइना हैं। राजनीतिक सिद्धांतों से उन्होंने कभी समझौता नहीं किया। यही कारण रहा कि आपात काल के दौरान इंदिरा गांधी की खिलाफत करने के चलते वे अकेले एमएलए रहे, जिन्हें पार्टी से निकाल दिया गया। उन्हें पार्टी मुखिया की अंध स्वामीभक्ति कतई रास नहीं आई। अस्सी वर्षीय यह शख्सियत आज के सभी राजनीतिक दलों के खेमे से बेहद खिन्न हैं। खुद को पार्टी बंधन से मुक्त कर रखा है। विनोवा भावे का भूदान आंदोलन रहा हो या लेबर व किसान आंदोलन। सभी में इन्होंने बढ़-चढ़कर सहभागिता निभाई।
नगर के सिविल लाइन स्थित जज कालोनी में बेहद सादगी से जिंदगी गुजार रहे श्री श्रीवास्तव की छवि सर्व स्वीकार्य नेता की रही है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 1994 में विधान परिषद चुनाव होना था। ओम प्रकाश श्रीवास्तव का नाम उम्मीदवारी के लिए प्रस्तावित हुआ तो भाजपा, कांग्रेस, कम्यूनिस्ट पार्टी सहित समूचा विपक्ष उनके साथ खड़ा हुआ। उन्हें 186 मत मिले। मगर तत्कालीन सत्ताधारी दल का उम्मीदवार महज एक मत से विजयी रहा।
उनके जीवन परिचय पर नजर डालें तो वर्ष 1932 में इनका जन्म हुआ। छात्र काल में ही राजनीति में सक्रिय हो उठे। 17 वर्ष की उम्र में लोहिया के विचारों से प्रभावित होकर वर्ष 1949 में सोशलिस्ट पार्टी का दामन थामा। 1954 में स्पेशल पावर एक्ट का पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर के साथ तीखा विरोध किया तो जेल में ठूंस दिये गये। बाद में कोर्ट ने सजा को निराधार मानते हुए सभी को बरी कर दिया। इसके बाद जवाहर लाल नेहरू के आह्वान पर सभी प्रमुख समाजवादियों के साथ वे कांग्रेस में शामिल हुए। वर्ष 1974 में कांग्रेस के टिकट पर सदर से विधायक चुने गये। वर्ष 1988-94 तक विधान परिषद सदस्य रहे। इस दौरान चिकित्सा शिक्षा मंत्री का पद मिला। श्री श्रीवास्तव की साफ-सुथरी छवि व लोकप्रियता का असर रहा कि पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर, गुजराल व एचडी देवगौड़ा से उनके दोस्ताना संबंध रहे। बता दें कि श्री श्रीवास्तव जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में रहे हैं।
किए कई उल्लेखनीय कार्य
ओम प्रकाश श्रीवास्तव ने जिले में शिक्षा के विकास के लिए पूर्वाचल विश्वविद्यालय का बिल सदन में प्रस्तुत कर पास कराया। वहीं पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप माडल की तर्ज पर प्रदेश में निजी मेडिकल कालेजों की स्थापना का खाका तैयार कराया। दैनिक जागरण से खास बातचीत में वे इस पर क्षोभ व्यक्त करते हैं कि आज के किसी पार्टी के पास दीर्घकालीन योजनाएं नहीं रहती। वे लालीपाप देकर तत्कालिक फायदा उठाने की कोशिश करते हैं। यह देख बहुत दुख होता है।


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