2 मार्च 2012

मांगलिक प्रयोजन
(संपादक)


आज मैं एक मांगलिक समारोह में शरीक हुआ यह समारोह समाज के अमुक नवधनाढ्य के यहां था, यह एक डाक्टर लड़की और एक भारतीय प्रशासनिक सेवा मे चयनित डाक्टर वर के परिणयसंस्कार के रस्म का मांगलिक प्रयोजन का अवसर था. इस समारोह में लगभग जिले के राजनेता एवं व्यवसायी तथा तथाकथित सामाजिकजन मौजूद थे। पर आम आदमी था तो पर उसकी उपस्थिति कहीं नदारद थी ।

इनमें अधिकांश को मैं जानता था, शायद वह भी हमें जानते होंगे पर यह ठीक से नहीं पता था कि यह कौन हैं, पर उनके इर्द गिर्द जो भी होते थे यदि हमें जान रहे होते तो यह फख्र से बताते कि यह बड़े कलाकार हैं। यह सुन  बहुत ही सन्तोष मिल रहा था कि लोग भूल चुके थे कि मैं भी कभी यहां कि राजनीति में सक्रिय ही नहीं था बल्कि चुनाव भी लड़ा था।

संयोग ही था कि उन दिनों के मेरे सारे विरोधी (राजनैतिक) पर जो कभी न कभी उस क्षेत्र को प्रतिनिधित्व दे चुके थे, आज खाली ही नहीं उदास भी थे क्योंकि अब उन्हें वहां की राजनीति से अलग थलग होना पड़ा था या कर दिया गया था। जिसमें हर एक दूसरे ने एक दूसरे के साथ लगभग वही किया था जो एक राजनीतिक को करना पड़ता है। या यह भी कहें कि जनता को वह उसकी इच्छा के अनुरूप साबित कर पाने में नाकाम साबित हुआ। जबकि इनमें से लगभग हर एक ने अपने को सबल करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। क्या ? यही लोकतंत्र का असली चेहरा है।

वहां कुछ अन्य दलों के प्रत्याशी भी थे, एवं एक सत्तारूढ़ दल के प्रत्याशी जिन्हें चुनाव परिणाम की सार्थक परिणाम की प्रत्यासा में विजयी होने की पूरी उम्मीद थी, वह आम लोगों के बीच अपने सारे कौशल बघारने को विवश थे, उन्ही में से मैंने जिस प्रत्याशी को पीछे खींचकर सादाब उनके हाल चाल जानना चाहा तो वह पूरे आत्मविश्वास से अपने विजय की समीक्षात्मक व तार्किक तर्को से सन्तुष्टि तक अवगत कराने का भरपूर प्रयास किये। मैं भी उनकी विजय से संतुष्ट हो तृप्ति का एहसास कराया. संयोग ही था कि उनके धनपशु प्रतिद्वन्दी जिस तरह से अपने राजनीति में आने को लेकर अपनी अनभिज्ञता एवं अन्यमनस्कता जता रहे थे उससे आश्चर्य तो नहीं हो रहा था पर इस सामाजिक परिवेश एवं राजनितिक दल में उनके घुटन का एहसास जरूर दिखाई दे रहा था।

वहां एक तपका और था जो पिछले 25 वर्षों मे या तो जवान हुआ था या धनवान हुआ था। जिसे न तो मैं पहचानता था और न ही वह मुझे वह जानता था, इसीलिए उससे बहुत रूबरू नहीं हुआ जा पा रहा था। पर जिन्हें हम ठीक से जानते थे वो अब या तो किसी सार्वजनिक समारोहों में जाना छोड़ चुके थे या इस लोक से विदा हो गए हैं।

पर एक बात से खुशी जरूर हो रही थी कि अभी एक पीढ़ी है जहां संस्कार शेष हैं। क्यांेकि अपने परिचितों या नेताओं के साथ मेरा भी अभिवादन उसी गर्म जोशी से कर रहे थे। इससे लगा कि अभी इस इलाके में सम्भावनाएं शेष हैं। इसका यह कतई मतलब नहीं कि वह मुझे महत्व दे रहा था।

दूसरी ओर एक जमात और थी जिनसे किसी न किसी प्रकार हम रिस्तों से जुड़े थे लम्बे समय बाद किसी सार्वजनिक आयोजन में मेरी भागेदारी उन्हे आश्चर्य पर सुखद लग रही थी। जिनमें उस एम.एल.सी. पर तरस आ रहा था जिसे अकारण ही दुबारा मौका नहीं दिया गया था जिसे सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दिलाकर उक्त पद पर आसीन किया गया था। उसका दुःख देखने लायक था क्योंकि आज वह मुझे घेरकर हाल चाल जानना भी चाह रहा था और बता भी रहा था। पर जब भी मैं पहले जब वे उक्त पद पर थे मिला था तो या तो वह भागने की कोशिस की या छुपने की मुझे तभी लगने लगा था कि इनकी राजनीतिक उम्र लम्बी नहीं है। और यही उनकी आज की चिन्ता भी थी।

बताते चलें कि मैं भी नीर छीर के विलगाव की प्रवृत्ति से परे आज पूरे समारोह मे पूरे मनोयोग से शरीक था जनवासे में जाकर बारातियों, वर, समधी एवं अन्य अनेकों से मिला क्योंकि इस समारोह का प्रबन्धकत्व का दायित्व जिनके जिम्मे था उन्ही कि इच्छा थी कि मैं देर तक रूकूं।

मुख्यतः इस समारोह ने समाज में एक अलग पहचान देने में कामयाब तो रहा पर गांव की जो चीजें यहां नदारद थीं उनमें ग्रामीण लोकाचार, जन सामान्य जिन्हें उन्ही के बन्धुबान्धवों ने अलग कर रखा था, जिनकी इस पूरे समारोह में दोयम दर्जे की नागरिक्ता साफ दिखाई दे रही थी, इनमें खासकर उन नवनिहालों की जिनके वस्त्र या तो मलीन थे या शक्लें उतनी आकर्षक नहीं थीं, पर मुझे उसमें नजर आ रहे थे कई विधायक, कई भारतीय प्रशासनिक सेवा को सुशोभित करने वाले सजग अन्वेषी चेहरे, पर उन्हें वहां से भगाया जा रहा था। यही जब कल इन्हें भगाने वालों को नहीं पहचानेंगे तब फिर इन्हें ऐ गालियां दे रहे होंगे।

संयोग से ये तथाकथित समाजवादी दल / जनता दल के विचारधारा के तथाकथित प्रतिनिधियों की सोच का मामला है, जिससे सामाजिक न्याय की लड़ी गयी लम्बी लड़ाई के उपरान्त प्राप्त किए जाने का सपनों में देखा गया था, सामाजिक न्याय के पुरोधाओं के साथ ही उनका भी जो कल तक इसी भीड़ के हिस्से रहे हैं।

पर मैं यहां क्यों आमन्त्रित था क्या मंै भी उनके उसी समूह का जो अनैतिक आचरणों से प्राप्त अकूत सम्पत्तियों के मालिक बन बैठे हैं, का हिस्सा होता जा रहा हूं या किन्ही कारणों से शरीक किया जा रहा हूं मुझे नहीं पता कि पिता जी की सूची में इनके कभी नाम रहे हों, क्यांेकि मेरा वह चचेरा भाई भी वहां आमन्त्रित था जिसने हाई स्कूल की परीक्षा पास न करने के बाद जीप, ट्रक के व्यवसाय में आकर कई ट्रृक चलवा रखा है।

सामाजिक बदलाव या विकास का यही असली स्वरूप है यह इसबार के जौनपुर प्रवास पर मांगलिक प्रयोजन में आमंत्रण में शरीक होकर देखा यही संस्कृति सामाजिक बदलाव की मानदण्ड बन रही है क्योंकि अब ‘दहेज’ प्रथा के खिलाफ खड़े होने के बजाय इस प्रदर्शन के विविध प्रकार के दर्शनार्थियों से इस ‘दहेज’ प्रथा के खिलाफ आन्दोलन की बजाय और सरकारी नियमों की धज्जियां उड़ते देख मैं भी सहमा हुआ था क्योंकि यह भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित और ‘आयकर अधिकारी’के रूप में प्रथम नियुक्ति प्राप्त वर का परिणय संस्कार समारोह था। जिसमें ‘फारच्यूनर’ का महंगा वाला माडल दहेज की सामग्री में शरीक था इसलिए उसे मण्डप के समीप प्रदर्शनार्थ रखा गया था।

इस नवजवान के भारतीय प्रशासनिक सेवा में चयनित और ‘आयकर अधिकारी’ के नाते सम्पत्ति लोभ का उत्साह देख मेरा सारा आदर्श भीतर से तार तार हो रहा था जिसे छुपाए मैं मुख्य जेवनहार के भोजनालय के आरम्भ होने तक किस तरह ‘भाई’ को रोके रखने में संकोच कर रहा था यह मैं ही समझ रहा हॅूं, क्योंकि वह आमजन के जेवनहारालय में उदर भरण पहले ही कर चुका था, क्योंकि जब उधर बम्बईया सेठ के साथियों ने भोजनार्थ उन्हें वहां ले जा रहे थे तो वहंा का नजारा देख मैंने ही उन्हें कहा था कि आपका इंतजाम अन्दर है, यह बात मुझे इस समारोह के मुख्य निदेशक ने इंतजामात का निरीक्षण कराते वक्त ही अवगत करा दिया था।
आशा है ऐसे प्रसाशनिक अधिकारियों से कि उनके कार्यकाल में आय से अधिक सम्पत्ति का कोई झंझट न रहे।
(आगे भी जारी)

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

पुराना
................
http://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=Vv90aU3W8XM#!

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