26 अप्रैल 2012

शोक

बृज भूषण तिवारी जी के निधन पर गहरा शोक-व्यक्त करता हूँ.
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इनके बहाने समाजवाद की डगर का सफ़र 
"तिवारी जी" का सानिध्य स्वर्गीय जनेश्वर मिश्र के यहाँ मिला यह 'समाजवादी चिन्तक' कि भूमिका में कितने रहे हैं इसका आकलन आज करने कि बजाय यह आकलन करने कि आवश्यकता है कि अब इनकी जगह कौन लेगा समाजवादी पार्टी में,कपिल देव सिंह, जनेश्वर जी गए,बृज भूषण तिवारी जी नहीं रहे, मोहन सिंह जी वीमार हैं.
'नेता जी के सहयोगियों में ए बड़े नाम हैं' कहा जा सकता है जो समाजवाद समझते हैं या थे, पर भावी पीढ़ी के समाजवादियो  में जो बड़ा नाम है वह अम्बिका जी का है पर न तो इस बात को मिडिया कभी उच्चारित करता है और न ही कोई भी समाजवादी . संभवतः नेताजी इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं .
नेता जी के परिवार में समाजवाद के मर्मग्य प्रोफ़ेसर साहब को यदि छोड़ दिया जाय तो अब समाजवाद का जो नया चेहरा सामने आ रहा है उसको कम ही लोग देख पा रहे हैं.
पर अब नए समाजवाद जिसके सबसे बड़े उदहारण 'राजा' भैया यानी रघुराज प्रताप सिंह जी का नाम लिया जा सकता है क्योंकि इनकी जीतनी कहानियां सुनाई देती हैं उनसे यही निकल कर आता है कि इनके इलाके में बिना इनकी मर्ज़ी के कोई पत्ता ही नहीं हिलता. तो वहां इनका समाजवाद चलता है .
माननीय मुख्यमंत्री जी कि समाजवादी युवजन सभा के अनुशासित सिपाहियों की तस्वीरें मिडिया शपथ ग्रहण के उपरान्त दिखा ही चुका है, अब बचे खुचे समाजवादी सरकारी समाजवाद का पाठ पढेंगे 
प्रदेश अब समाजवादी धारा पर विकसित होने को तैयार खडा है. पर समाजवाद क्या है आज तक समझ नहीं आया. लोहिया जी का समाजवाद पर विचार तो पढ़ा हूँ पर उसका कहीं असर तो दिखाई नहीं देता.
मिश्र जी के सानिध्य में समाजवादी विचारों को जब जब जानना चाहा वह भी अनाप सनाप सुनाते रहते थे, हाँ यदि आप उनके दरबार में घुस गए तो वह आप के बारे में जानकारी पूरी लेने के बाद ही मुहं खोलते थे. 
लोग कहा करते थे कि ए समाजवादी हैं मुझे तो कभी समाजवादी नज़र नहीं आये हाँ एक बार वो समाजवादी बात तो कर रहे थे जिन दिनों 'अमर सिंह' का समाजवाद पर कब्जा हो गया था इस बात से वह जरूर चिंतित थे कि 'नेता जी' नाम लेते थे (मुलायम सिंह को) क्या हो गया है 
कौन समझाए. वह खुद समझाने पर तैयार नहीं थे मुझे स्मरण है कई बार उनसे मिलकर अमर सिंह के षड्यंत्रों से नेता जी को अवगत कराने के लिए आग्रह करते रहे पर मिश्र जी ने कभी हिम्मत नहीं की. या उनकी हिम्मत नहीं हुयी, दोनों बातें थीं उनके मन में नेता जी की चिंता तो थी पर समाजवादी नीतियों की कत्तई नहीं क्योंकि उनके महँ होने के पीछे नेता जी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है यदि उनका सम्मान नेताजी न करते तो 'तमाम समाजवादियो  की तरह यह भी किसी बिराने के हिस्से होकर रह जाते'.सच तो यह है की राजनीती में इस तरह के चहरे कुछ चेहरों को बचने के लिए भी होते हैं और दिखाने के लिए भी, क्योंकि विभिन्न वादों की भूमिका अपने को बनाये रखने की होती है न उसको क्रियान्वित करने की या कराने की यही कारण है की कोई भी बड़ा नेता इस तरह के लोगों से उबार नहीं पाता है और न ही इस तरह के 'पिंजड़े के नेता' उसे उबारने के लिए अपने को अलग करते हैं 
अब युवा मुख्यमंत्री को 'स्पष्ट' दृष्टि से समाजवादी योजनाओं को नए सिरे से लागू करने की आवश्यकता है जिससे प्रदेश 'वास्तविक समाजवाद' के मार्ग पर अग्रसर हो सके. और जातिवाद के आग में जल रहा प्रदेश शुकून से जी सके . विभिन्न जातियों के गुंडों, दबंगों, भ्रष्ट और मूर्ख तथाकथित नेताओं को संतुष्ट करने से कोई 'बदलाव नहीं होने जा रहा है. क्योंकि ए सब समाजवादी पार्टी में आ या जा तो सकते हैं पर समाजवादी नहीं हो सकते क्योंकि ये आज भी सामंती सोच के हैं, पूंजीवादी और 'द्विज' सोच के हैं अतः 'श्रमजीवी' वर्ग के लोगों के लिए आने वाले समाजवाद के बीच केवल ये 'जोक' की तरह  खड़े हो जाने वाली 'दिवार' का काम करते हैं.
आशा  ही नहीं पूरा विश्वास है की 'श्री अखिलेश यादव' मुख्यमंत्री के रूप में अच्छे लोगों की तलाश कर उनका योगदान प्रदेश के लिए करेंगे और नए आयाम खड़े करेंगे इन सड़े हुए विचारों के कि यादव केवल और गुंडे होते हैं. अच्छे शासक और प्रशासक नहीं को बदलेंगे. दृढ़ता से अपने इर्द गिर्द आ रहे तिकड़मी नौकरशाहों की वजाय अपनी टीम के निर्णयों  को लागू करने में कामयाब होंगे.और एक  कुशल शासक  की भूमिका में कामयाब होंगे।
(संपादक)


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