25 जुल॰ 2012

कहीं राहुल गाँधी कांग्रेस के अंतिम नेता न साबित हो जाएँ'

चित्र; डॉ.लाल रत्नाकर 
'कहीं राहुल गाँधी कांग्रेस के अंतिम नेता न साबित हो जाएँ' देश जिस संकट से जूझ रहा है दर असल वह संकट ही कांग्रेस की देन है, आज इस नवजवान के लिए सत्ता में बैठे लोग राजतन्त्र की तरह इसके लिए ताज पोशी का ख्वाब देख रहे हैं, पर आश्चर्य होता है जिस नवजवान को यह न पता हो की भारत देश क्या है, यहाँ की माटी में क्या होता है क्या नहीं होता है, गरीब के साथ नौटंकी करने से देश का मुखिया बनने का ख्वाब पालना अब संभव नहीं है, जिन मूल्यों पर प्रणव दा  राष्ट्राध्यक्ष बने हैं उन्ही मूल्यों पर देश के अनेक राजनेता यह ख्वाब पाले है की इस अबोध बालक में क्या रखा है, जनता इसे नकार चुकी है, वह बिहार की हो या उत्तर प्रदेश की मध्य प्रदेश की हो या गुजरात की,आज का हर नवजवान समझ चूका है की इस देश में जब तक इमानदार आदमी और राष्ट्रप्रेमी (भाजपाइयों) जैसा नहीं, राज्य में नहीं आएगा ये अलग बात है की यहाँ के मनचलों ने गांधी को गोली मारी, मनचलों ने इंदिरा को गोली मारी और क्षेत्रवादियों ने राजीव को गोली मारी ये सब क्या है ? क्यों नहीं सूना गया उन्हें यदि उनकी आवाज़ दबी तो परिणाम क्या होंगे हम सब समझते हैं जनता का भरोसा और ख़तम हो जाएगा, आज सारे संसाधनों पर जो काबिज हैं वो राष्ट्र भक्त नहीं हैं.

राहुल गांधी जीतनी उम्र में देश चलाने की बात सोच रहें हैं या उनके चापलूस ऐसा सोच रहे इस देश को लूटने के लिए, उनसे ज्यादा प्रतिभावान आजतक बेरोजगार है और अपना घर भी बसाने की नहीं सोच पा रहा है. इस अपढ़ आदमी को चापलूस देश सौपना चाह रहे हैं, मतिभ्रष्ट हो गए हैं जो ऐसा सोच रहे हैं.

यदि सवाल कांग्रेस और देश का है तो कांग्रेस पार्टी को प्रतिबंधित कर देना चाहिए की ये किसी भी चुनाव में हिस्सा नहीं लेगी क्योंकि अब यह वो कांग्रेस पार्टी है नहीं है जिसने देश की आज़ादी की लड़ाई लड़ी थी. अब यह सोनिया गाँधी की प्राइवेट कंपनी हो गयी हैं, जिसके नए प्रेसिडेंट राहुल गांधी का रास्ता बनायेंगे ! बी बी सी ऐसा लिखे तो उसके मायने होते हैं, इन्ही मायनों में प्रणव दा ऐसा करें या करेंगे आश्चर्यजनक नहीं है . अब तक का इनका कोई ऐसा इतिहास नहीं रहा है.दुनिया में इनकी क्या छवि है निचे के लेख में संलग्न है-

"नई दिल्ली। ब्रिटेन के समाचार पत्र  द इंडिपेंडेंट ने हाल ही में प्रधानमंत्री को सोनिया गांधी की कठपुतली कहा, तो अब ब्रिटेन के ही एक समाचार पत्र ने नए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को फिक्सर करार दिया है। समाचार पत्र द टाइम्स ने लिखा है कि नए राष्ट्रपति ने अगली गांधी पीढ़ी का रास्ता खोला शीर्षक से समाचार लिखा है। इसमें कहा गया है कि प्रणब मुखर्जी के लिए पॉवर ब्रोकर जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया है।

समाचार पत्र लिखता है कि प्रणब मुखर्जी को तोड़ तोड़ करके राष्ट्रपति बनाया गया है। भारत के नेताओं ने एक दक्ष फिक्सर को राष्ट्रपति बनाकर कांग्रेस के लिए गांधी परिवार की पांचवी पीढ़ी को मतदाताओं के सामने उतारने के रास्ता साफ कर दिया है। पत्र आगे लिखता है कि राष्ट्रपति का पद एक रस्मी पद है। अगर 2014 के लोकसभा चुनाव में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला (जिसकी पूरी संभावना है) तो प्रणब मुखर्जी गठबंधन की बातचीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

प्रणब को राष्ट्रपति बनाने के बाद अब इस बात की पूरी संभावना है कि राहुल गांधी को महत्वपूर्ण पद दे दिया जाए। राहुल गांधी चुनाव में जीत दिलाने वाले नेता के रूप में नाकामयाब रहे हैं लेकिन उनके समर्थकों का मानना है कि प्रदेशों के चुनावों में उनकी नाकामयाबी को तब भूलाया जा सकता है, जब उन्हें कांग्रेस का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर उतारा जाएगा।" 

यदि हम इस आलेख को ही आधार मान लें तो भी राहुल गांधी से कोई चमत्कार नहीं होने जा रहा है जैसा की अब तक हुआ है एक भी कायदे के कांग्रेसी को इन्होने मौका नहीं दिया है सारे लुटेरे लगाए हैं, जिन्होंने जनता को राजतन्त्र की तरह लूटा है, यह बात जनता जान गयी है अबकी वह इनका इंतजाम करने जा रही है.

रही बात की जनता अब पांच वर्षों तक इंतज़ार तो करती है, पर वो जानही गयी है की ये पोलतिशियन चाहते ही है की ये जिन्दा कौम ही न रहे इसे मुर्दा बनाकर छोडो, जिससे यह कहावत चरितार्थ न हो कि "जिन्दा कौमें पांच वर्षों का इंतज़ार नहीं करती." यही कारण है की प्रायोजित तरीके से महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और सामजिक संतुलन को बनाए रखने में ही सारे कांग्रेसी अपना दिमाग खपाते रहते हैं. चाहे जब जातीय जनगरना का सवाल हो या बराबरी का हिस्सा देने का सवाल हो तब इन्हें विचित्र किस्म के लोग दिखाई देते हैं.निचे संलग्न किए गए अखबारों ने यही मुहीम चला रखी है. 

अब एक पहलू और है की क्या करें सोनिया गाँधी जिस बेटे के लिए सारा खेल रच रही हैं वह वैसे तो काफूर होता जा रहा है, फिर भी कांग्रेसी हैं की मानाने को तैयार ही नहीं हैं .

(जारी........)

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वाह दादा अब आप 'राष्ट्रपति' के ओहदे पर बैठे हो और लोकतंत्र की रक्षा के लिए, जिस देश ने आज़ादी ही विरोध प्रदर्शनों से हासिल की हो उसके 'राष्ट्रपति' के यह बयान हतप्रभ करने वाला है -

लगातार विरोध प्रर्दशन अव्यवस्था को बढ़ावा दे रहे हैं: प्रणब

 मंगलवार, 14 अगस्त, 2012 को 22:08 IST तक के समाचार
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी
प्रणब मुखर्जी ने कहा भूख और निर्धनता को दूर करना होगा
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने चेतावनी दी है कि अगर देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं पर हमला होगा तो इससे अव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा.
भारत के 66वें स्वाधीनता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम अपने पहले संदेश में प्रणब मुखर्जी ने कहा, "चारों तरफ़ फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ़ ग़ुस्सा और बुराई के खिलाफ़ विरोध जायज़ है क्योंकि ये हमारे राष्ट्र की क्षमता और शक्ति को खोखला कर रहा है. कभी-कभी लोग धैर्य खो देते हैं लेकिन यह हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं पर हमले का बहाना नहीं बन सकता."
भ्रष्टाचार के खिलाफ़ अन्ना हज़ारे और योग गुरु रामदेव के प्रदर्शनों की ओर इशारा करते हुए राष्ट्रपति ने कहा, "जब अधिकारी निरंकुश हो जाते हैं तो लोकतंत्र को नुकसान पहुंचता है लेकिन जब विरोध बार-बार होते हैं, तब हम अव्यवस्था को न्यौता देते हैं. लोकतंत्र एक साझा प्रक्रिया है. लोकतांत्रिक नज़रिए के लिए गरिमापूर्ण व्यवहार और विरोधी विचारों को सहन करने की ज़रूरत होती है."

"दूसरे स्वतंत्रता संग्राम की ज़रूरत"

अपने भाषण में देश के सामने चुनौतियों के बारे में बात करते हुए प्रणब मुखर्जी ने कहा, "यदि हमारी अर्थव्यवस्था ने बुनियादी क्षमता हासिल कर ली है तो अगली छलांग के लिए इसे अब लॉचिंग पैड का काम करना होगा. हमें अब दूसरे स्वतंत्रता संग्राम की ज़रूरत है, ताकि भारत हमेशा के लिए भूख, बीमारी और निर्धनता से मुक्त हो जाए."
"
जब अधिकारी निरंकुश हो जाते हैं तो लोकतंत्र को नुकसान पहुंचता है लेकिन जब विरोध बार-बार होते हैं, तब हम अव्यवस्था को न्यौता देते हैं."
प्रणब मुखर्जी, राष्ट्रपति
लेकिन साथ ही राष्ट्रपति ने चेतावनी दी कि यदि देश का विकास और प्रगति, बढ़ती आकांक्षाओं, ख़ासकर युवाओं की आकांक्षाओं, के मुकाबले पिछड़ जाते हैं तो ग़ुस्सा स्वाभाविक है.
प्रणब मुखर्जी ने कहा, "युवा ज्ञान और अवसर चाहते हैं. उनके पास सामर्थ्य है, उन्हें मौका चाहिए."
असम में पिछले महीने हुई हिंसा पर दुख जताते हुए राष्ट्रपति ने कहा, "हिंसा कोई विकल्प नहीं है. हमारे अल्पसंख्यकों को सांत्वना की, सदभावना की और आक्रमकता से बचाए जाने की ज़रूरत है. हमें एक नई आर्थिक क्रांति के लिए शांति की ज़रूरत है जिसमें हिंसा के प्रतिस्पर्धात्मक कारणों को समाप्त किया जा सके."

सक्रिय राजनीति की ओर बढ़े प्रियंका गांधी के कदम

नई दिल्ली/अमर उजाला ब्यूरो
Story Update : Sunday, August 05, 2012    12:26 AM
priyanka gandhi walked up steps in active politics
प्रियंका गांधी को सक्रिय राजनीति में लाने से पहले सियासत में उनकी भूमिका तय करने की तैयारी हो गई है। दरअसल, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की गैर मौजूदगी में रायबरेली की कमान प्रियंका के हाथों में होगी। वह यहां के लोगों की फरियाद सुनेंगी। भले ही सोनिया की अनुपस्थित में प्रियंका के काम का दायरा रायबरेली तक सीमित होगा, मगर प्रियंका के कंधों पर दी गई यह जिम्मेदारी 2014 के लोकसभा चुनावों की जंग में उतरने से पहले ‘होमवर्क’ के तौर पर देखी जा रही है।
कांग्रेसी सूत्रों के अनुसार जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया किन्हीं वजहों से उपलब्ध नहीं होंगी, तो उनके संसदीय क्षेत्र के लोगों की फरियाद सुनने के लिए प्रियंका जनता दरबार लगाएंगी। सूत्रों का कहना है कि रायबरेली में हाल में दौरे के दौरे सोनिया को वहां के लोगों ने इसकी गुजारिश की थी।
लोगों की शिकायत थी कि जब वह खराब तबीयत और अन्य वजहों से उपलब्ध नहीं हो पाती हैं तो प्रियंका उनकी बातों को सुन लें। ऐसे में उनकी समस्याओं को जल्द दूर किया जा सकेगा। लोगों का यह भी कहना था कि प्रियंका सिर्फ चुनाव के समय ही उनके सामने नजर आती हैं। दिल्ली लौटने पर सोनिया ने इस बात पर विचार विमर्श किया। बाद में फैसला लिया गया कि उनकी गैर मैजूदगी में प्रियंका रायबरेली का कामकाज देखेंगी।
कांग्रेस को है जरूरत
इस कदम के बड़े राजनीतिक मायने निकाले जा रहे है। मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में जब कांग्रेस का सियासी ग्राफ नीचे को झुकता दिख रहा है, तो ऐसे में प्रियंका के करिश्मे की पार्टी को सख्त जरूरत है। गाहे-बगाहे कांग्रेसी भी प्रियंका को सक्रिय राजनीति में उतारने की मांग करते रहे हैं। ऐसे में अब एक तरफ राहुल गांधी की बड़ी भूमिका तय की जा रही है तो दूसरी तरफ प्रियंका की सियासी भूमिका की शुरुआत को भी अमलीजामा पहनाया जा रहा है।
सोनिया की चिंता है रायबरेली
प्रियंका से जुड़े इस फैसले को रायबरेली सीट को लेकर सोनिया गांधी की चिंता के रूप में भी देखा जा रहा है। इस साल हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में जिले से पार्टी का एक भी विधायक चुनकर नहीं आया था। पार्टी के खिलाफ माहौल इस कदर बिगड़ चुका हैं कि हरचंदपुर को छोड़कर पार्टी के विधायक नंबर दो पर भी नहीं आ सके थे।
जिले की पांच में से चार सीटें सपा ने जीती थीं। यह आंकड़ा कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब है। 2014 के चुनाव में इस सीट को बनाए रखना कांग्रेस के लिए चुनौती है। इसलिए सोनिया ने अपने घर को मजबूत करने की पहल तेज कर दी है।

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राष्ट्रपति प्रणब का सपना

विनोद वर्मा विनोद वर्मा | बुधवार, 25 जुलाई 2012, 15:19 IST
एक क़िस्सा है. एक गड़रिया था. वह भेड़ चराते हुए जब एक टीले पर जाकर बैठ जाता था तो उसका बातचीत करने का अंदाज़ बदल जाता था. वह जनहित और न्याय की बातें करने लगता था.टीले से उतरता तो फिर वही गड़रिया का गड़रिया.
धीरे-धीरे वह लोकप्रिय होता गया. एक दिन लोगों को शक हुआ कि टीले में ही कुछ है. उन्होंने टीले को खुदवाया तो उसने नीचे से विक्रमादित्य का सिंहासन निकला.
लोगों को समझ में आ गया कि अनपढ़ गड़रिया उस टीले पर बैठकर इतनी ज्ञान की बातें क्यों किया करता था.
वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी ने एक बार कहा था कि जिस तरह उस टीले के नीचे विक्रमादित्य का सिंहासन था, उसी तरह से रायसीना की पहाड़ी को खोद के देखा जाए तो किसी पुराने राजा का सिंहासन निकलेगा.
प्रभाष जोशी ने कहा कि कुछ तो ऐसा है जिसकी वजह से वहाँ पहुँचकर हर व्यक्ति की भाषा एक जैसी हो जाती है.
रायसीना पहाड़ी वही बड़ा सा टीला है जिस पर राष्ट्रपति भवन स्थित है.
ये किस्सा याद आया राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार ग्रहण करते हुए दिए गए प्रणब मुखर्जी के भाषण   को सुनकर.

इस भाषण में प्रणब मुखर्जी ने कहा, " हमारा राष्ट्रीय मिशन वही बने रहना चाहिए जिसे महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल, राजेंद्र प्रसाद, अंबेडकर और मालौना आज़ाद की पीढ़ी ने भाग्य स्वरुप हमारे सुपुर्द किया था, ग़रीबी के अभिशाप को ख़त्म करना और युवाओं के लिए रोजगार के ऐसे अवसर पैदा करना, जिससे वे भारत को तीव्र गति से आगे ले जाएँ."
उन्होंने कहा कि भूख से बड़ा अपमान कोई नहीं है और वे चाहते हैं कि ग़रीबों का इस तरह से उत्थान किया जाए कि जिससे ग़रीबी शब्द आधुनिक भारत के शब्दकोश से मिट जाए.
प्रणब मुखर्जी चार दशकों से भी अधिक समय से भारतीय राजनीति की मुख्य धारा में हैं.
वे उस समय भी सत्ताधारी दल का हिस्सा थे, जब प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा गांधी ने 'ग़रीबी हटाओ' का नारा दिया था.
वे उस घटना के भी गवाह हैं जब प्रधानमंत्री के रूप में राजीव गांधी ने कहा था कि केंद्र से भेजे गए एक रुपए में से जनता तक 15 पैसे ही पहुँचते हैं.
वे उस समय भी सत्ता प्रतिष्ठान का हिस्सा थे, जब वित्तमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह देश के दरवाज़े आर्थिक उदारीकरण के लिए खोल रहे थे और महात्मा गांधी को उद्धरित करते हुए आखिरी आदमी की बात कर रहे थे.
वे उस समय भी सरकार में थे जब योजना आयोग की एक रिपोर्ट बता रही थी कि देश में 80 प्रतिशत लोग 20 रुपए प्रतिदिन से भी कम में गुज़ारा कर रहे हैं.
संयोगवश वे उस समय भी सत्ता से जुड़े हुए थे जब योजना आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र देकर कहा कि जो शहरी 32 रुपए और जो ग्रामीण 26 रुपए रोज़ कमाता है, वह ग़रीब नहीं है.
इन चार दशकों में कई और ज़िम्मेदारियों के अलावा एक बार वित्त राज्यमंत्री, दो बार वित्तमंत्री और एक बार योजना आयोग के उपाध्यक्ष रह चुके प्रणब मुखर्जी को ग़रीबी और भूख पर इस तरह द्रवित होते किसी ने नहीं देखा.
उनके पेश किए हुए बजटों में किसी ने ग़रीबी और भूख़ को ख़त्म करने के क्रांतिकारी उपायों की झलक नहीं देखी.
बल्कि उनकी छवि देश के कॉर्पोरेट प्रतिष्ठानों के प्रिय मित्र की ही रही और यह कोई संयोग नहीं है कि कॉर्पोरेट प्रतिष्ठानों की छवि कम से कम ग़रीबों के हितचिंतकों की नहीं है. यह भी संयोग नहीं है कि टीम अन्ना उनके ख़िलाफ़ आरोपों का एक मोटा पुलिंदा लिए घूम रही है.
पहले प्रणब मुखर्जी ऐसी जगहों पर थे जहाँ से वे सरकार की नीतियों को प्रभावित कर सकते थे, चाहते तो ग़रीबों का भला कर सकते थे, भूख को मिटा सकते थे, लेकिन अफ़सोस कि वे ऐसा न कर पाए न ऐसा करने की कोशिश करते हुए दिखे.
अब वे जहाँ हैं वहाँ से वे ज्ञानोपदेश ही दे सकते हैं और आज के बाद वही कह सकेंगे जिस पर मंत्रिमंडल की स्वीकृति की मुहर लगी होगी.
ऐसे में उनके भाषण का एक और वाक्य याद आता है, जिसे उनके प्रायश्चित की तरह देखा जा सकता है, "कभी-कभी पद का भार व्यक्ति के सपनों पर भारी पड़ जाता है."
क्या कहें कि प्रणब मुखर्जी पर चार दशकों में एक भी ऐसा मौक़ा नहीं आया जब उनका सपना उनके पद भार के बोझ तले दबा न हो.

अब जो पद उनके पास है वह सपने तो दिखा सकता है लेकिन उसे पूरा करने में रत्ती भर भी मदद नहीं कर सकता.

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राहुल गांधी का रास्ता बनाएँगे प्रणब मुखर्जी?
 सोमवार, 23 जुलाई, 2012 को 14:45 IST तक के समाचार

टाइम्स लिखता है 2014 के चुनाव के बाद प्रणब गठबंधन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे
क्या प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति भवन राहुल गांधी की राह बनाने के लिए भेजा गया है?
ब्रिटेन में प्रकाशित होने वाले प्रतिष्ठित अख़बार 'द टाइम्स' का यही कहना है. टाइम्स ने प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति निर्वाचित होने की खबर की सुर्खी यूँ लगाई है – ‘नए राष्ट्रपति ने अगली गांधी पीढ़ी का रास्ता खोला’.
अख़बार ने प्रणब मुखर्जी के लिए 'फ़िक्सर' और 'पॉवरब्रोकर' जैसे शब्दों का प्रयोग किया है और कहा है कि प्रणब मुखर्जी को जोड़तो़ड़ करके राष्ट्रपति बनाया गया है.
रविवार को हुई मतगणना के बाद प्रणब मुखर्जी को भारत का तेरहवाँ राष्ट्रपति घोषित किया गया है. वे 25 जुलाई को शपथ लेने वाले हैं.
पिछले चार दशकों से केंद्र की राजनीति से जुड़े प्रणब 70 के दशक से अब तक केंद्र में कांग्रेस की या कांग्रेस के नेतृत्व में बनने वाली हर सरकार में मंत्री के पद पर रहे हैं.
यूपीए-2 की सरकार में तो प्रणब मुखर्जी को नंबर दो होने के अलावा सरकार को राजनीतिक संकट से उबारने वाले 'संकट-मोचक' के रूप में देखा जाता रहा है.

प्रणब की भूमिका की चर्चा

अख़बार लिखता है कि भारत के राजनेताओं ने एक अत्यंत दक्ष ‘फ़िक्सर’ को राष्ट्राध्यक्ष बनाकर, सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी के लिए गांधी की पाँचवीं पीढ़ी को चुनाव में मतदाताओं के सामने उतारने का रास्ता साफ़ कर दिया.
"एक पावरब्रोकर और पूर्व कांग्रेसी वित्तमंत्री, 76 वर्षीय प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति बनवाया गया, चतुराई से की गई जोड़-तोड़ से"
द दाइम्स
टाइम्स ने प्रणब मुखर्जी की जीत को इन शब्दों में बयान किया है – "एक पावरब्रोकर और पूर्व कांग्रेसी वित्तमंत्री, 76 वर्षीय प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति बनवाया गया, चतुराई से की गई जोड़-तोड़ से."
अख़बार लिखता है कि हालाँकि राष्ट्रपति का पद एक रस्मी पद है लेकिन यदि 2014 के चुनाव में किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला, जिसकी कि पूरी संभावना है, तो प्रणब मुखर्जी गठबंधन की बातचीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.
टाइम्स साथ ही लिखता है कि उससे पहले, अभी तत्काल, उनकी प्रोन्नति से कांग्रेस अपने आपको एक साल के बाद फिर से राजनीतिक तौर पर पुनर्जीवित कर सकती है, जिस साल में उसका शासन और अर्थव्यवस्था दोनों की गति धीमी पड़ गई.
अख़बार का कहना है – इस बात की पूरी संभावना है कि 42 वर्षीय राहुल गांधी को अब कोई महत्वपूर्ण पद दिया जाएगा.
राहुल गांधी
भारतीय मीडिया में राहुल गांधी को काफ़ी समय से भावी प्रधानमंत्री के रुप में संबोधित किया जा रहा है
टाइम्स लिखता है कि राहुल गांधी चुनाव में जीत दिलवा पानेवाला नेता बन सकने में नाकाम रहे हैं मगर उनके समर्थकों का मानना है कि प्रादेशिक चुनावों मे उनकी नाकामी को तब भुला दिया जाएगा जब उन्हें कांग्रेस का प्रधानमंत्री पद का युवा उम्मीदवार बनाकर उतारा जाएगा. हालाँकि आलोचकों का कहना है, इसके सिवा पार्टी के पास और विकल्प क्या है?
अख़बार ने मनमोहन सिंह सरकार के कामकाज की आलोचना की चर्चा करते हुए पिछले दिनों टाइम पत्रिका में मनमोहन सिंह को – अंडरऐचीवर – करार दिए जाने और राष्ट्रपति ओबामा की उस टिप्पणी का ज़िक्र किया है जिसमें ओबामा ने विदेशी सुपरमार्केट को अनुमति देने जैसे आर्थिक सुधारों को लागू नहीं कर सकने के लिए भारत को झिड़का था.
मगर अख़बार का कहना है कि विशेषज्ञों की राय में सुधारों की राह में असल बाधा प्रणब मुखर्जी थे जिन्होंने विदेशी अधिग्रहणों पर, पहले के समय से टैक्स लगाने जैसे फ़ैसले लिए जिसका असल उद्देश्य वोडाफ़ोन को निशाना बनाना था.
टाइम्स लिखता है कि मनमोहन सिंह, जिन्हें भारत में 20 साल पहले हुए सुधारों का जनक माना जाता है, अब आर्थिक मामलों को अपने हाथ में ले चुके हैं और उम्मीद की जा रही है कि वे प्रणब मुखर्जी के उन फ़ैसलों को बदल देंगे.
BBC HINDI से साभार -

बड़ी भूमिका की ओर बढ़े राहुल

Jul 26, 02:59 pm
नई दिल्ली [राजकिशोर]। संगठन और सरकार में बड़ी जिम्मेदारी के लिए हामी भर चुके कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के बढ़ते दखल और विस्तार के निशान दिखने लगे हैं। गुजरात, हिमाचल प्रदेश और त्रिपुरा में टिकटों के वितरण से लेकर चुनावी रणनीति तय करने में अपनी युवा टीम को जिम्मेदारी देकर राहुल ने इस दफा खुद के कार्यकारी या उपाध्यक्ष बनने जैसी अपनी बढ़ी भूमिका के स्पष्ट संकेत दे दिए हैं। वहीं, सरकार में सोनिया गांधी की इच्छा के मुताबिक राहुल के प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री के नए किरदार को स्वीकार करने पर अभी मंथन जारी है।
अति विशिष्ट सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी चाहती हैं कि राहुल अब सरकार में प्रशासनिक अनुभव भी लें। संगठन में पिछले आठ साल से राहुल सक्रिय हैं ही, उनकी मां की सोच है कि अगले लोकसभा चुनाव से पहले वह प्रशासनिक स्तर पर भी अनुभवी हो जाएं। इस दृष्टि से सोनिया और उनके सलाहकार चाहते हैं कि राहुल को प्रधानमंत्री कार्यालय में मंत्री के तौर पर भूमिका निभानी चाहिए।
इससे उन्हें सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय की कार्यप्रणाली और उनकी जिम्मेदारियों का अनुभव मिलेगा। हालांकि, इसमें एक खतरा यह भी है कि राहुल के पीएमओ में बैठते ही सबका ध्यान प्रधानमंत्री के बजाय उनकी तरफ केंद्रित हो जाएगा। इससे मनमोहन सिंह को कमजोर करने का संदेश भी जा सकता है।
सूत्रों के मुताबिक, राहुल ने अभी भी सरकार में भूमिका के सवाल पर पत्ते नहीं खोले हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय के अलावा उनके लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय का विकल्प भी तलाशा गया है। मगर राहुल सरकार में किस स्वरूप में शामिल होंगे, इस पर अभी अंतिम फैसला नहीं हो सका है। वहीं, संगठन में बड़ी भूमिका के लिए न सिर्फ वह तैयार हो चुके हैं, बल्कि उस पर काम भी शुरू कर दिया है।
अब तक सिर्फ उत्तर प्रदेश के बारे में ही सारे फैसलों तक खुद को सीमित रखे रहे राहुल अब इस साल होने वाले तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में सक्रिय भूमिका निभाएंगे। इसके पुख्ता संकेत उन्होंने विधानसभा टिकटों की छानबीन के लिए बनी स्क्रीनिंग कमेटी में अपनी टीम को जिम्मेदारी सौंप कर दे दिए हैं। हिमाचल प्रदेश के लिए बनी स्क्रीनिंग कमेटी में शीला दीक्षित को अध्यक्ष बनाया गया है तो लंबे समय तक राहुल के साथ संबद्ध सचिव रहे गृह राज्यमंत्री भंवर जितेंद्र सिंह को सदस्य के रूप में भेजा गया है। इसी तरह त्रिपुरा में केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग राज्यमंत्री जितिन प्रसाद टिकटों की छानबीन करेंगे।
कांग्रेस के लिहाज से सबसे अहम राज्य गुजरात में स्क्रीनिंग कमेटी का अध्यक्ष जहां केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्री डॉ. सीपी जोशी को बनाया गया है। वहीं टीम राहुल के प्रमुख सदस्य पेट्रोलियम राज्यमंत्री आरपीएन सिंह भी इसमें सदस्य हैं।
प्रणब की जगह देने के लिए 10 सांसदों का सोनिया को पत्र
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो] प्रणब मुखर्जी के इस्तीफे से खाली हुए लोकसभा में नेता सदन के पद के लिए कांग्रेस के 10 राज्यों के 10 सांसदों ने राहुल गांधी का नाम बढ़ा दिया है।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखे पत्र में इन सांसदों ने कहा है कि राहुल ने दलितों, आदिवासियों, गरीबों और महिलाओं को सामाजिक व सियासी क्षेत्र में आगे लाने में बहुत काम किया। सांसद भक्त चरण दास, फ्रांसिस सरदिन्हा, पीसी चाको, अरविंद शर्मा, संजय निरुपम, प्रताप सिंह बाजवा और एमएल शर्मा समेत 10 सांसदों ने सोनिया को लिखा है कि यदि राहुल को लोकसभा में नेता सदन बनाया जाता है तो वास्तव में हिंदुस्तान के पिछड़े वर्गो की बात संसद में और ज्यादा प्रभावी तरीके से उठ सकेगी और यह देशहित में होगा।
अमर उजाला से साभार -


प्रणब को राष्ट्रपति घोषित करने की वैधता को चुनौती

पीयूष पांडेय/नई दिल्ली
Story Update : Wednesday, July 25, 2012    12:29 AM
challenge the legality of Pranab President
राष्ट्रपति पद के चुनाव में क्लीन स्वीप करने वाले प्रणब मुखर्जी को निर्वाचित करने की वैधता को मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सर्वोच्च अदालत में राष्ट्रपति चुनाव में नामांकन पत्र दाखिल करने वाले चरण लाल साहू ने इस मामले में याचिका दायर की है।

याचिका में प्रणब को देश का 13वां राष्ट्रपति घोषित करने के आदेश को अवैध करार देने की मांग की गई है। साथ ही कहा गया है कि राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए 50-50 निर्वाचित सदस्यों को प्रस्तावक और अनुमोदक बनाया जाना असंवैधानिक है। ऐसा राजनीतिक दलों ने राष्ट्रपति पद पर अपना एकाधिकार जमाने के लिए किया। ताकि आम आदमी इतनी संख्या में सांसद या विधायकों का समर्थन न जुटा सके। ऐसे में सिर्फ राजनीतिक दल की ओर से खड़ा किया गया उम्मीदवार ही चुनाव लड़ेगा।

सर्वोच्च अदालत से याचिकाकर्ता साहू ने कहा है कि राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति निर्वाचन अधिनियम, 1952 और 1974 में इस संबंध में बनाई गई नियमावली अवैध है। इसलिए इसे असंवैधानिक करार दिया जाए। 1974 से पूर्व राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को अपना नामांकन पत्र महज एक प्रस्तावक और एक अनुमोदक के साथ दाखिल करना पड़ना था।
साथ ही नामांकन के साथ जमानत राशि जमा करने का भी प्रावधान नहीं था। जबकि 1974 में संशोधन के बाद यह संख्या 10-10 दी गई और जमानत राशि भी ढाई हजार कर दी गई। इसके बाद 1997 में इसमें इजाफा कर संख्या को 50-50 कर दिया गया। साथ ही जमानत राशि 15 हजार रुपये हो गई।

याचिकाकर्ता का आरोप है कि राजनीतिक दलों ने ऐसा इसलिए किया, ताकि कोई आम आदमी इस पद के चुनाव में शामिल ही न हो सके। इस तरह से निर्वाचित राष्ट्रपति कभी निष्पक्ष नहीं हो सकता, जिसके भंयकर परिणाम देखने को मिले हैं। पेशे से वकील साहू ने उदाहरण के तौर पर याचिका में तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के कार्यकाल का उदाहरण दिया। याचिकाकर्ता के मुताबिक उस समय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के इशारे पर 1975 में आपातकाल की घोषणा कर दी गई थी और राषट्रपति का यह कदम असंवैधानिक था।

गौरतलब है कि साहू की आपत्तियों को राष्ट्रपति चुनाव के लिए नियुक्त पीठासीन अधिकारी ने खारिज कर दिया था। साहू ने प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति की शपथ लिए जाने से ठीक एक दिन पहले याचिका दायर की है। उन्होंने अदालत से आग्रह किया है कि प्रणब के निर्वाचन को अवैध घोषित किया जाए।

याचिका में कहा गया है कि उम्मीदवार का नाम मतदाता सूची में होना जरूरी है। जबकि प्रणब ने पश्चिम बंगाल स्थिति अपने गृह नगर की मतदाता सूची में अपना नाम तक नहीं दर्शाया है। इसके अलावा वह चुनाव के दौरान लाभ के पद पर थे। उनके नामांकन को पीठासीन अधिकारी ने गलत स्वीकार किया। प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री तथा निगमों के अध्यक्ष की ओर से उनके नाम का प्रस्ताव और अनुमोदन भारतीय दंड संहिता की धारा 171 के तहत चुनाव में भ्रष्ट तरीके अपनाने के दायरे में आता है।
(अमर उजाला से साभार)

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