डॉ.लाल रत्नाकर
श्री अखिलेश यादव जी युवा हैं और एक अनुभवी नेता के पुत्र भी पर अब वो स्वंय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी उनके फैसले से उत्तर प्रदेश की जनता की अनेक उम्मीदें बंधी हैं।
चुनावी वादे और ईमानदारी-
अभी उम्मीद बची है या अब धीरे धीरे वो जा रही है। यह तो सरकार जाने पर लोग भूल जाते हैं सरकारों के अच्छे लोक लुभावन तोहफों को जब जनता को पता चलता है कि सरकार ने उसे ब्लैकमेल किया है।
इतिहास गवाह है इस सच का जिसे हर बार हम भूल जाते हैं कहीं इस बार भी यही न हो जाय।
प्रदेश को सामाजिक गैरबराबरी और विकास की रूकी हुई प्रक्रिया ने तवाह कर दिया है।
सामाजिक बदलाव का प्रासेस हमेशा उंची जातियों के नौकरशाह रोक देते हैं और परिवर्तन की सारी उम्मीद ही धरी की धरी रह जाती है और सरकार बदल जाती है।
पिछली मायावती की सरकार बसपा की नितियों के खिलाफ चलकर इसी गति की प्रक्रिया की ग्रास बन चुकी है। श्री अखिलेश यादव जी युवा हैं और इनके सलाहकार भी युवा ही होंगे, जरूरी नहीं कि युवा ही ठीक सोचता हो।
पुराने लोगों के संघर्ष की इच्छा और बदलाव के प्रासेस को समझना चाहिए।
अम्बिका जी और आजम साहब के बारे में मिडिया जो कुछ लिख रहा है यदि वह सही है तो संकेत अच्छे नहीं है।
अम्बिका जी इसबार का चुनाव हार गए है यह वहां की अवाम की समझ है इससे अम्बिका जी की समझ कम नहीं हो जाती है।
आजम खां ऐसी शख्सियत हैं जो राज बब्बर के बाद ‘नेता जी’ के छुपे शत्रु श्री अमर सिंह का विरोध ही नहीं किए जिसकी वजह पार्टी से बाहर गए और समाजवादी पार्टी को उन्हें उनकी शर्तो पर पार्टी मे वापस लाना पड़ा।
अन्त में यह कहना है कि ये सब आज भी प्रासांगिक हैं, उन युवाओं से जिन्होने आईआईएम से पढ़ाई की है। मैं इस पढ़ाई की निन्दा नहीं करता पर आशंका हमेशा इनकी नियति पर रहती है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें