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भारतीय जनता पार्टी के इतिहास में अभूतपूर्व सफलता का यश मोदी जी को मिलना था जिसे देश की अवाम ने 16 मई 2014 को आए लोक सभा के परिणामों ने संसार के सम्मुख स्पष्ट कर दिया है। इसके लिए मोदी जी का श्रम और उत्साह जिस तरह इस चुनाव में उभर कर आया उसकी कदर आदर और जनता के विश्वास का सम्मान मोदी जी ने अपनी आभार सभा में बड़ोदरा में करा दिया है।
उसी सभा में मोदी जी ने जिस तरह देश की अवाम को भरोसा दिलाया कि सरकार सबकी यानी सवा करोड़ भरतीय अवाम की होगी। इसी से उम्मीद है कि उनके मन में ये अवश्य होगा कि देश के सभी धर्मों जातियों के लोगों ने उनपर विश्वास किया है। डर है कि उनके दल के स्वर्णवादी कुत्सित सोच के लोग उन्हीं के प्रति अविश्वास न पैदा कर दें। जो अब तक इस पार्टी का इतिहास भी रहा है। यदि मोदी जी वास्तव में उस षडयन्त्र को भी दबाने में कामयाब हो पाए तो वो इस देश के गैर ‘ब्राह्मण’ प्रधानमंत्री के रूप में वास्तव में वो काम करेंगे जो पिछले 60 वर्षों में वास्तव में नहीं हुए हैं।
जैसे उ.प्र. में सपा 2012 के प्रचंड बहुमत से जब जीती तो किसी को ये अनुमान नहीं था कि इस दल को इतनी सीटें मिलने जा रही हैं। पर वह जीत बसपा की खामियों की वजह से थीं। वैसे ही कांग्रेस की खामियां इस जीत के लिए महत्वपूर्ण हैं और इसका सारा श्रेय अमित शाह को दिया जा रहा है जैसे किसी जमाने में बसपा की जीत के लिए सतीश मिश्रा के गुणगान हो रहे थे। जबकि उस विजय का सारा श्रेय पूरवर्ती सपा सरकार के निकम्मे कारनामों की वजह से था।
वैसे ही कारण उत्तर प्रदेश क्या पूरे देश में हुआ है। पर कई प्रदेशों के प्रमुखों ने अपनी सत्ता बचाई यह गलती उ.प्र. में इस चुनाव में हुई है। जिसे टाला जा सकता था, इन पिछड़े एवं दलित नेताओं ने पता नहीं कुछ समझा या नहीं पर यदि नहीं समझ आया तो उन्हें राजनीति करने का कोई हक नहीं है। यह साफ तौर पर दिखाई दे रहा है कि देश में जागरूकता बढ़ी है, गलत नेतृत्व के कारण राजनैतिक हार हुई है, जबकि मोदी ने दलित और पिछड़े नेताओं को अपने साथ जोड़ा है जो आशा है वैचारिक रूप से समय समय पर मोदी जी को अपनी राय देते ही रहेंगे।
अब सारी जीत का श्रेय मोदी को है कि उन्होंने अपना विश्वासपात्र इन्तजामकार उ.प्र. भेजा और उसने भी उनके प्रति ईमानदारी दिखाई। जबकि स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि भाजपा पार्टी का ब्राह्मण चेहरा जितना विरोध कर सकता था किया। परन्तु मोदी ने उनकी परवाह नहीं की और अपने मिशन पर लगे रहे। इसमें कोई दो राय नहीं कि मोदी ने यह साबित कर दिया कि जो ठान लिया उसे पूरा करेंगे।
जबकि उ.प्र. के दलित और पिछड़े राजनेताओं ने सवर्ण अविश्वासी और परिवार के सिवा किसी समझदार को करीब नहीं आने दिया है। जबकि पिछड़े और दलितों में विश्वसनीयता और श्रमशीलता कूट कूट कर भरी हुई है।
उसी सभा में मोदी जी ने जिस तरह देश की अवाम को भरोसा दिलाया कि सरकार सबकी यानी सवा करोड़ भरतीय अवाम की होगी। इसी से उम्मीद है कि उनके मन में ये अवश्य होगा कि देश के सभी धर्मों जातियों के लोगों ने उनपर विश्वास किया है। डर है कि उनके दल के स्वर्णवादी कुत्सित सोच के लोग उन्हीं के प्रति अविश्वास न पैदा कर दें। जो अब तक इस पार्टी का इतिहास भी रहा है। यदि मोदी जी वास्तव में उस षडयन्त्र को भी दबाने में कामयाब हो पाए तो वो इस देश के गैर ‘ब्राह्मण’ प्रधानमंत्री के रूप में वास्तव में वो काम करेंगे जो पिछले 60 वर्षों में वास्तव में नहीं हुए हैं।
जैसे उ.प्र. में सपा 2012 के प्रचंड बहुमत से जब जीती तो किसी को ये अनुमान नहीं था कि इस दल को इतनी सीटें मिलने जा रही हैं। पर वह जीत बसपा की खामियों की वजह से थीं। वैसे ही कांग्रेस की खामियां इस जीत के लिए महत्वपूर्ण हैं और इसका सारा श्रेय अमित शाह को दिया जा रहा है जैसे किसी जमाने में बसपा की जीत के लिए सतीश मिश्रा के गुणगान हो रहे थे। जबकि उस विजय का सारा श्रेय पूरवर्ती सपा सरकार के निकम्मे कारनामों की वजह से था।
वैसे ही कारण उत्तर प्रदेश क्या पूरे देश में हुआ है। पर कई प्रदेशों के प्रमुखों ने अपनी सत्ता बचाई यह गलती उ.प्र. में इस चुनाव में हुई है। जिसे टाला जा सकता था, इन पिछड़े एवं दलित नेताओं ने पता नहीं कुछ समझा या नहीं पर यदि नहीं समझ आया तो उन्हें राजनीति करने का कोई हक नहीं है। यह साफ तौर पर दिखाई दे रहा है कि देश में जागरूकता बढ़ी है, गलत नेतृत्व के कारण राजनैतिक हार हुई है, जबकि मोदी ने दलित और पिछड़े नेताओं को अपने साथ जोड़ा है जो आशा है वैचारिक रूप से समय समय पर मोदी जी को अपनी राय देते ही रहेंगे।
अब सारी जीत का श्रेय मोदी को है कि उन्होंने अपना विश्वासपात्र इन्तजामकार उ.प्र. भेजा और उसने भी उनके प्रति ईमानदारी दिखाई। जबकि स्पष्ट दिखाई दे रहा था कि भाजपा पार्टी का ब्राह्मण चेहरा जितना विरोध कर सकता था किया। परन्तु मोदी ने उनकी परवाह नहीं की और अपने मिशन पर लगे रहे। इसमें कोई दो राय नहीं कि मोदी ने यह साबित कर दिया कि जो ठान लिया उसे पूरा करेंगे।
जबकि उ.प्र. के दलित और पिछड़े राजनेताओं ने सवर्ण अविश्वासी और परिवार के सिवा किसी समझदार को करीब नहीं आने दिया है। जबकि पिछड़े और दलितों में विश्वसनीयता और श्रमशीलता कूट कूट कर भरी हुई है।
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