अहम समस्या
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कहाँ से लाएं अच्छे चहरे (अच्छी छवि के लोग)
सरकारें जब अजनबीयों की होती थीं तो लगता था जैसे ये दूध के धुले लोग हैं पर जब से सत्ता के
लोग परिचित ही नहीं अतिपरिचित उन पदों पर बैठने लगे तब से असलियत सामने आने लगी कि
कितने बुरे लोग इतने
अच्छे पदों पर आसीन होते हैं।
पहली ग़लती तो जनता करती है कि उन्हे चुनती है, दूसरी ग़लती राजनेता करता है कि बुरे लोगों को यह काम
देता है जो उसके चमचे होते हैं। तीसरी ग़लती ये होती है कि हमें उनसे उम्मीद होती है।
लेकिन इसबार बलवंत को तो मंत्री बनाकर धैर्य की सारी सीमायें लॉघ दी गयी है। हो सकता है इनकी बहुतेरी
ख़ूबियॉ हो, जिससे प्रदेश का हित सधता हो ? लेकिन यह बचपन की पढ़ी कहानियों का भी हिस्सा लगता है,
एक राजा था वह हमसे ख़ुश हुआ और अपना मंत्री बना लिया।
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जो भी हो २०१७ की उ प्र की रणनीति केवल युथ पर केंद्रित करके नहीं देखना चाहिए, यह भी देखना है की इन पाच सालों में युवाओं के लिए हुआ क्या है? लोक सेवा आयोग, उच्च शिक्षा सेवा आयोग, माध्यमिक शिक्षा सेवा आयोग, अनेक चयन बोर्डों को पंगु बनाकर रखा गया। हमें तो मह्सुश होता है युवा मुख्यमंत्री को उत्तर प्रदेश के मतदाताओं में राजनितिक समीकरण का ही ज्ञान नहीं है, जिन वर्गों और जातियों पर ये ध्यान केंद्रित कर रहे हैं उनके नायक वे नहीं हैं. स्थानीय नेताओं को मंत्री बनाना और वैचारिक प्रतिबद्धता को बढ़ाना दोनों दो धाराएं हैं. अगर राजनैतिक चरित्र में ऐसे युवा आगे आएंगे समाज के कोढ़ हैं तो उनकी राजनीती की सोच भी वैसी ही होगी, अगर सवर्ण इस वैचारिक कंगाली को स्वीकार कर लिया है की अपने गुंडे के लिए वो माननीय नेता जी को चुनेगा या उनके पुत्र को नेता मानेगा तो यह समय की नज़ाकत नहीं, राजनैतिक दिवालियापण ही कहा जाएगा। जैसा की बसपा और सपा का इतिहास रहा है की जनता इन्हे मौक़ा देती है और ये अपनी अनुभव हीनता से उसी जनता को धोखा देते हैं और उसे मूर्ख समझते हैं।
हो सकता है इनके इर्द गिर्द के चापलूसों को सच न दिख रहा हो लेकिन अब तो यह बात जनता को भी समझ में आने लगी है की इनकी पसंद क्या है ? जहाँ देश में भ्रष्ट को हटाने और पिछड़ों दलितों एवं अकलियत के खिलाफ गर्मजोशी से युद्ध चल रहा हो वहां उनको खुश करना जो इनके दुश्मन है वाजिब नहीं है। नए विस्तार से जो उम्मीद थी वह काफूर हो चुकी है अब तो भगवान भरोसे ही नैया पार होनी है, इसी बीच अमर सिंह का पदार्पण और हस्तक्षेप भी बहुतेरे संदेह पैदा करता है।
भाँडो
भाँडो अब गीत गाओ
मिलकर संगीत गाओ
दुश्मन के प्रीत पाओ
अपना लूटा के आओ
भांडों तुम गीत गाओ
गुंडों के गीत गाओ
उनसे सम्भल के गाओ
हमसे निकल के गाओ
जितना हो निगल के गाओ
भांडों अब गीत गाओ
जनता के राग गाओ
जनता के रग पे गाओ
उनके कुरग पे गाओ
नेता के ढंग पे गाओ
भांडों अब गीत गाओ
जले के रंग, ढंग पे गाओ
कटे हुए अंग पे गाओ
जाने के, आने के गाओ
बुद्धि के कुरंग पे गाओ
भांडों अब गीत गाओ
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