12 मार्च 2017

2017 के चुनाव परिणामों के मायने ?

2017 के चुनाव परिणामों के मायने ?
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सपा बसपा के उत्तर प्रदेश की राजनीती में बने रहने के पुराने ख़यालात को तोड़ने का श्रेय और गैर राजनितिक कार्य करने का दायित्व सपा और बसपा के नेताओं को देना वाजिब होगा। 
यहीं पर यह उल्लेख भी महत्त्वपूर्ण होगा की केंद्र में आयी सरकार की नियति और नीति साफ़ तौर पर संविधान प्रदत्त दलितों और पिछड़ों के हकों को समाप्त कर मध्यकालीन व्यवस्था को लागू करने की है जिसके लिए वह  अपनी तैयारी में लगा हुआ है जिसका राजनितिक विरोध न कर पाना ही मूलतः इन वर्गों की कमजोरी है। 
राष्ट्रीय जनगणना 2011 के लिए किये गए जातिवार जनगणना की रिपोर्ट न प्रकाशित करना और मंडल कमीशन के प्रावधानों को लागू करने के बजाय उन्हें तोड़-मरोड़कर समाप्त कर देना जिसका सारा दायित्व जनता पर नहीं उस वर्ग की राजनीती कर रहे नेताओं की है।  
जारी-----------


चुनाव परिणाम के पूर्व भोर में लिखा गया मेरा आलेख !
मित्रों आज का चुनाव परिणाम क्या आएगा ? 
इस पर ना जाते हुए हम आपका ध्यान कुछ ऐसे लोगों की तरफ ले जा रहे हैं जो आपके मध्य रह कर आपका अहित करते रहते हैं ! आप उन्हें पहचानने की कोशिश नहीं करते हैं और यदि आपको वह दिखाई भी दे जाते हैं तो आप के नेताओं की उन पर नजर ही नहीं जाती ? वे उन्हें नजर क्यों नहीं आते ?
मेरा आलेख ऐसे अवसर पर उन्ही को समर्पित है।
- डॉ.लाल रत्नाकर

मित्रों अमर सिंह आजकल किस दल में हैं यह बहुत सारे लोग जानते हैं ? लेकिन जिन लोगों को अमर सिंह का चरित्र केवल एक दलाल का ही पता था अब वे जान गये होंगे कि वह कितने बड़े जातिवादी हैं और सामाजिक न्याय के घोर विरोधी ? क्या उन्हें यह पता है कि उन के कल के बेवजह के बयान को भी जानना चाहिए कि समाजवादी पार्टी में इतनी गालियां खा कर के इतना अपमान सह करके वह आदमी क्यों बना हुआ है।
और समाजवादी पार्टी ने उन्हें राज्यसभा क्यों दी है इन सबका उत्तर में आपको आगे दे रहा हूं।
मूलत: अमर सिंह जिस तरह का चरित्र लगता है और वह कितना बहुरूपिया है उस का सबसे बड़ा प्रमाण कल उसके बयान से निकल कर के आया कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी नदी के दो किनारे हैं और वह आपस में कभी मिल नहीं सकते।
इसकी व्याख्या कर उसने केवल अपने जातिवादी सोच का घटियापन उजागर कर रहा है उसे यह नहीं पता कि प्रकृति के बहुत सारे आयाम मानव को जीने की कला सिखाते हैं और उन्हीं का अनुकरण कर मनुष्य जीवन जीता है माननीय अमर सिंह मान न मान मैं तेरा मेहमान की अवस्था में हर जगह अपना उपदेश करने लगता है जबकि नदी का निर्माण बिना दो पाटों के हो ही नहीं सकता?
इसलिए वह दोनों पाट या उसके किनारे एक तरह से आपस में मिले हुए होते हैं और साथ साथ चलते हैं और उन्हीं के मध्य नदियां कल कल कल करके बहती हैं वे बहती रहे इसलिए दोनों किनारों का होना बहुत जरूरी होता है जिस दिन वह किनारे कमजोर पडते हैं उस दिन नदी का तांडव पूरी कायनात को अपने आगोश में लेकर उस परिवेश को जल में समाहित कर लेता है । इसलिए अमर सिंह को यह पता है कि जिस दिन यह किनारे अपनी जगह छोड़कर एक साथ आ जाएंगे उस दिन अमर सिंह जैसे लोग जल मग्न हो जायेंगे ।
कौन कहे अमर सिंह की अमर सिंह जी अब तो जाने दीजिए क्योंकि जाति का स्वभाव इस देश में बना ही रहता है बहुत कम ऐसे लोग हुए हैं जो अपने जातिय स्वभाव से मुक्त हो पाए हैं ।
कम से कम यह आवाज जिस रूप में भी अखिलेश यादव की ओर से निकल कर आई है वह यह संदेश तो देती है कि अगर उनकी रक्षा और आप जैसे जातीवादियों से सुरक्षा नहीं हो सकती है तो वह बसपाइयों के साथ ही संभव है और मैंने बहुत पहले यह बात लिखी है कि तब तक सामाजिक बदलाव नहीं होगा जब तक सामाजिक रुप से दबे कुचले लोग और सदियों से अन्याय सहते आए हुए लोग एकजुट नहीं होंगे।
मुझे लगता है कि अखिलेश यादव को यह भान तो हो गया है लेकिन बहन जी को भी इस पर विचार करना होगा और बहुत ही खुले मन से उनके साथ खड़ा होना होगा और यदि ऐसा नहीं होता तो आने वाली सदियां इन दोनों लोगों को सामाजिक न्याय के असली दुश्मन के रूप में पहचानेंगी ।
यही कारण है कि अमर सिंह जैसे लोग समाजवादी पार्टी में और सतीश मिश्रा जैसे लोग बहुजन समाज पार्टी में अपनी जगह पक्की रखना चाहते हैं । क्योंकि वह यह जानते हैं कि जिस दिन इनका नियंत्रण इन दलों से हट जाएगा उस दिन यह लड़ते भिडते कहीं एक हो गए तो फिर उनका क्या हस्र होगा ?
हमें अखिलेश जी के इस बयान पर बौद्धिक स्तर पर सोचने की जरूरत है और देश के तमाम बुद्धिजीवियों से मेरा आग्रह है कि इस देश को बचाना है तो इन दोनों को एक साथ लाने के लिए और समता और समानता की राह पर चलने के लिए आंदोलन करना चाहिए और जन जन में इस भाव को बढ़ाना चाहिए कि बगैर इन दोनों की वैचारिकी के एक साथ आए ? किसी भी तरह से सामाजिक सरोकारों का सही-सही क्रियान्वन नहीं हो सकता ?
क्योंकि बाबा साहब अंबेडकर के बनाए हुए तमाम संवैधानिक अधिकारों को आज तक इन समाजों के लिए सही ढंग से उपयोग ही नहीं किया जा सका है, जिस के बहुत बड़े कारण वही लोग हैं जो आज तक सत्ता में विराजमान है।
बहुत सारी योजनाएं हैं जिनपर हमारे बुद्धिजीवी आपस में बहस तो करते रहते हैं और उनके अच्छे हल भी उनके पास हैं । लेकिन यह हमारे कूढमगज कथित राजनेता ब्राह्मणों और दूसरी दोगली और बेईमान कौमों से नियंत्रित होते हैं, जिसका परिणाम यह होता है कि समय आने पर वह उन्हें धोखा देता है और यह धोखा खाकर के आहत होते हैं लेकिन सुधरते नहीं हैं ।
अरे भाई जिन लोगों ने तुम्हें इस लायक बनाया है कि तुम उनका नेतृत्व करो तो कम से कम उनके बुद्धिजीवियों, वकीलों, डॉक्टरों, इंजीनियरों, कलाकारों, साहित्यकारों,संगीतकारों, समाजसेवियों को तलाश करो, तैयार करो यही दायित्व दिया है समाज ने तुम्हें ।
उनकी व्याख्या पर मत जाओ वह तो तुम्हें गर्त में ले जाएंगे, अगर तुम्हारे लोग आगे आएंगे तो उनकी मदद के लिए उन लोगों को भी उनके साथ आना पड़ेगा जो आज तक उनका विरोध करते आए हैं उनकी प्रतिभा का, उनके हुनर का, उनकी मेहनत का, ऐसा नहीं है कि पिछड़ों दलितों में काबिल नहीं है, बुद्धिजीवी नहीं हैं, इनको रोका गया है उन्ही लोगों द्वारा जो तुम्हारे इर्द-गिर्द दिखते हैं, तुम्हारी दलाली करते हैं, गुमराह करते हैं और यह कोई आज की नहीं सदियों की सच्चाई है ।
जब जब किसी भी महापुरुष ने इस बात को समझा कि वह कौन लोग हैं जो समाज को ऐसी हालत में करने के लिए जिम्मेदार हैं उन्होंने उनका बहिष्कार ही नहीं किया बल्कि चिन्हित करके समाज को उनके खिलाफ खड़ा होने का आवाहन किया ।
कहते हैं कि अंग्रेजों ने भी इस बात को पहचाना था की इन ब्राह्मणों को किसी भी तरह की न्याय व्यवस्था से दूर रखो क्योंकि उनका चरित्र न्यायप्रिय नहीं होता ? वह हमेशा अपने प्रति बेईमान होते हैं अपने और अपनों के लिए बेईमानी करते हैं? अन्यथा इस विविध जातियों के देश में सदियों से मुट्ठी भर लोग 80,90 प्रसिद्ध जगहों पर कैसे काबिज हो जाते हैं क्या केवल उनके यहां बुद्धिमान ही पैदा होते हैं नहीं उनकी बुद्धिमानी यही होती है कि उनके लोग बेईमान होते हैं और दूसरों के प्रति ईमानदार नहीं होते, अपने कमजोर से कमजोर आदमी को देश की अच्छी से अच्छी जगह पर बैठा देते हैं ।
और आज सोने की चिड़िया कहा जाने वाला देश उन्हीं चन्द लोगों के हाथ में गिरवी पड़ा हुआ है। जिन्होंने इसे सदियों से लूटा है बेचा है और अपने लिए इस्तेमाल किया है। यहां के असंख्य लोगों को सत्ता और व्यवस्था से सदा दूर रखा है बाबा साहब के दिए गए अधिकारों को उन तक पहुंचने ही नहीं दिया है।
मैं हमेशा इस बात को कहता रहा हूं कि जब तक सामाजिक रुप से कमजोर लोग एक साथ खड़े नहीं होंगे तब तक हम लड़ाई जीत ही नहीं सकते और रोज हारते रहेंगे जीत कर भी।
मेरे साथियों समझो उनकी साजिश को समझो और आगे आओ खड़े हो जाओ यह मत देखो कि वह क्या कह रहे हैं । उनकी मत सुनो वह तो भेदभाव कर तुम्हें तोड़ रहे हैं कमजोर कर रहे हैं और तो और तुम्हारे बीच आपस में दूरियां पैदा कर रहे हैं इन्होंने सदियों से ही किया है।
यदि तुम्हें यह लगता है कि यह आवाज तुम्हें कौन दे रहा है तो तुम इस तरह से समझो कि-
मैं बुद्ध हूं 
मैं बाबा साहब अंबेडकर हूं 
मैं माननीय कांसी राम हूं 
मैं महात्मा फुले हूं 
मैं पेरियार हूं 
मैं ललई सिंह हूं 
मैं रामस्वरूप वर्मा हूं 
मैं मैं हूं 
जागो उठो खड़े हो जाओ 
मैं पिछड़ा हूं 
मैं दलित हूं 
और मैं मुसलमान भी हूं 
मैं अफसर हूं 
मैं शासक हूं 
मैं मुख्यमंत्री हूं 
मैं प्रधानमंत्री हूं 
मैं संविधान हूं
मैं दाता हूं 
मैं वकील हूं 
मैं डॉक्टर हूं 
मैं ज्योतिषी हूं 
मैं बुद्धिजीवी हूं 
मैं वैज्ञानिक हूं 
मैं इंजीनियर हूं 
मैं कवि हूं 
मैं कथाकार हूं 
मैं कहानीकार हूं 
मैं संगीतकार हूं 
मैं मजदूर हूं 
मैं कलाकार हूं 
मैं किसान हूं 
मैं स्वाभिमान हूं 
मैं सम्मान हूं 
तुम्हारे अपमान के खिलाफ हूं

मैं तुंहें पहचानता हूं और उन्हें भी पहचानता हूं जो तुम्हे धोखा दे रहे हैं जो तुम्हारे खिलाफ हैं ज़ो तुम्हारे साथ होने का नाटक कर रहे हैं और तुम्हें लूट रहे हैं उठो जागो एक साथ खड़े हो जाओ तुम्हारे अंदर बहुत क्षमता है तुम देश संभालो नहीं तो यह देश फिर से गुलाम हो जाएगा और इस को गुलाम बनाने वाला राहुल सांकृत्यायन द्वारा बताया गया वही बेईमान आदमी होगा जो तुम्हारा दुश्मन है।

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